कामयाबी पाने के लिए मन में जज्बा और और होसलों में जान होनी चाहिए। उत्तराखंड में किसान के बेटे गुरजीत सिंह ने इस बात को चरितार्थ भी कर दिखाया है। गुरजीत ने जीआईसी से पढ़कर पंतनगर विश्वविद्यालय से बीटेक और आईआईटी खड़गपुर से एमटेक किया। इसके बाद भुवनेश्वर से पीएचडी कर गुरजीत को अब नासा जाने का अवसर मिला है। उनकी इस कामयाबी से पूरे उत्तराखंड के लोगों में ख़ुशी की लहर है। सितारगंज स्थित सिसैया निवासी सुरजीत सिंह हैं, जिनके सपने को बेटे ने न सिर्फ पूरा किया बल्कि परिवार और देश-प्रदेश का नाम देश-दुनिया में रोशन किया। बेटे को इस मुकाम तक पहुंचाने में पिता सुरजीत ने भी किसी तरह की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
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गुरजीत की शिक्षा के दौरान एक समय ऐसा भी आया कि उनके पिता ने अपनी धर्मपत्नी के गहने तक गिरवी रख दिए लेकिन बेटे की शिक्षा के बीच परिस्थितियों को आड़े नहीं आने दिया। साल 2003 में सितारगंज के राजकीय इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वर्ष 2009 में गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से बीटेक किया। इसके बाद आईआईटी खड़गपुर से सॉयल एंड वाटर कंजरवेशन इंजीनियरिंग में एमटेक किया और नासा जाने के लिए पीएचडी में जुट गए। उनकी मेहनत रंग लाई और गुरजीत ने शोध पूरा करने के बाद नासा के लिए आवेदन किया तो नासा में जेपीएल (जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी) में पोस्ट डॉक्ट्रल स्कॉलर में उनका चयन हो गया। गुरजीत ने वहां ज्वाइन भी कर लिया और 55 लाख से अधिक का सालाना पैकेज मिल रहा है।
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गुरजीत ने खेलने कूदने की उम्र में ही अपनी एक अलग पहचान बनाने की ठानी। शुरू से वे अपनी पढ़ाई व परिवार के जिम्मेदारियों के प्रति सदैव संजीदा रहे। गुरजीत के छोटे भाई बलजीत ने बीयू चंडीगढ़ से वर्ष 2014 में बीटेक करने के बाद वर्ष 2017 में आईआईटी रुड़की से एमबीए की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने नौकरी करने की जगह खुद का स्टार्टअप शुरू कर कई लोगों को रोजगार देने की ठानी और आज वह अपनी सोच को लेकर सफल है। वही गुरजीत की बड़ी बहन सुरेंद्र कौर जिला अल्मोड़ा के साल्ट में प्रोफेसर के तौर पर तैनात हैं।