हम यहाँ बात कर रहे हैं ले. कर्नल इंद्र सिंह रावत की, इनका जन्म सन 1915 में 30 जनवरी को पौड़ी जिले के बगेली गाँव में हुआ था, ये एक साधारण किसान परिवार में पैदा हुए थे, जहाँ हमेशा संसाधनों की कमी होती है तो ऐसे परिवार में पैदा होने के बावजूद 4 किमी दूर खिर्सू मिडिल स्कूल में प्रवेश लेकर इन्होने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी की थी। हाईस्कूल पूरी करने के बाद इंद्र सिंह लैंड्सडाउन चले गये और वहां वो गढ़वाल राइफल में भर्ती हो गये थे इसके बाद आईएमए से अपना कोर्स पूरा करके साल 1944 में इंद्र सिंह कमीशंड अधिकारी बन गये थे।
बात अगर शादी इनकी शादी की करैं तो जब ये मात्र 18 साल के थे तभी सन 1932 में इनकी शादी आशा देवी से हो गयी थी, लेकिन उस समय परिस्थितियां ऐसी थी की 7 साल तक ये अपनी पत्नी की शक्ल तक नहीं देख पाए थे। अब अपनी जिन्दगी के 104 बसंत देखने के बाद कर्नल कर्नल इंद्र सिंह रावत इस दुनियां को अलविदा कहकर जा चुके है और वो अपने पीछे दो ब्रिगेडियर बेटे और तीन बेटियों और उसके अलवा नाती-पोतों से भरा हुआ एक पूरा परिवार छोड़कर जा चुके हैं। हरिद्वार में 11वीं गढ़वाल राइफल की सेन्य टुकड़ी और उत्तराखंड एक्स सर्विसमैन लीग से जुड़े पूर्व सैनिकों ने उन्हें श्रधांजलि अर्पित की।
ले. कर्नल इंद्र सिंह रावत की बहादुरी की बात अगर करें तो साल 1947-1948 के भारत पाक युद्ध में इन्होने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिये थे जब 1953 में युद्ध विराम की घोषणा हुई तो वो असम राइफल में डेपुटेशन पर चले गये जहाँ उन्होंने नागालैण्ड में नगा विद्रोहियों को काबू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी जिसके लिए उन्हें कीर्ति-चक्र से भी नवाजा गया और वो उत्तराखंड के पहले ऐसे अधिकारी थे जिसे ये सम्मान हासिल हुआ था। साल 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद भारत तिब्बत सीमा पुलिस की पहली बटालियन का जिम्मा भी कर्नल इंद्र सिंह ने ही संभाला था इसके अलावा ग्वालदम में भी भारत तिब्बत सीमा पुलिस की बटालियन को इन्होने ही स्थापित किया इस तरह 37 साल तक देश सेवा करते हुए साल 1970 में ले. कर्नल इंद्र सिंह रावत सेना से रिटायर हुए थे।