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अजीबोगरीब है उत्तराखंड के इस मंदिर का रहस्य, बंद आँखों से करते हैं पुजारी साल में एक बार पूजा

हमारे देश में हर जगह अनेक देवी देवताओं के मंदिर स्थित हैं, और अगर बात करैं उत्तराखंड के तो यहाँ कण कण में ही भगवान का वास है इसीलिए इसे देवभूमि भी कहा जाता है। वैसे देखा जाए तो पूरे देश में ही हर मंदिर की अपनी कुछ मान्यतायें हैं, प्रत्येक मंदिर के अपने नियम और कानून हैं, जिसका पालन भक्तगण पूरी निष्ठा से करते हैं, कुछ ऐसे मंदिर हैं जहाँ महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। उत्तराखंड के इन्ही प्रसिद्ध मंदिरों में से एक मंदिर के बारे में आज हम आपको बता रहे हैं जहाँ महिलाओं और पुरुषों दोनों का प्रवेश वर्जित है VIP भी यहाँ नहीं आ सकते हैं।

उत्तराखंड के सुदूरवर्ती जिले चमोली के देवाल ब्लॉक के वांण गांव में स्थित है लाटू देवता का मंदिर जो समुद्र की सतह से 8500 फीट की ऊंचाई पर स्थित विशाल देवदार वृक्ष के नीचे एक छोटा सा मंदिर है। ये ऐसा मंदिर है जहाँ भक्तों को 75 फुट दूर से ही भगवान की पूजा करनी होती है, और इस मंदिर में पुजारी भी साल में जब एक दिन पूजा करते हैं तो उस दिन भी पुजारी को आँखों में पट्टी और नाक को भी कपडे से बंद करना होता है| लोगों की ऐसी मान्यता है कि लाटू देवता पूरे उत्तराखंड की आराध्य देवी माँ नंदा भगवती के छोटे भाई थे, और जब हर 12 साल में होने वाली प्रसिद्ध नंदा राजजात यात्रा शुरू होती है तो तब नंदा देवी अपने भाई लाटू देवता से मिलने अपने बारहवें पड़ाव पर इस गाँव वांण में पहुँचती है। जिसके बाद लाटू देवता अपनी बहन से मिलते हैं और हेमकुंड तक अपनी बहन नंदा को छोड़ने आते हैं।

पौराणिक मान्यता यह है कि लाटू कनौज के गौड़ ब्राह्मण थे, जो मां नंदा देवी के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत की यात्रा पर आये। वे जब इस गाँव में पहुंचे तो यहाँ आते आते उन्हें अत्यधिक प्यास लग गयी। उन्होंने गाँव में एक स्त्री से पानी माँगा पर महिला रजुसला थी, जिसके कारण उसने ब्राह्मण से कहा कि हमारे उस कमरे में तीन घड़े हैं, उनमें से एक घड़े में पानी है आप खुद वहां जाकर पानी पी लीजिये, पर ब्राह्मण ने पानी की जगह मदिरा पी लिया। जिसके कारण नशे में वह जमीन पर गिर गए और उनकी जीभ कट गई। खून जमीन पर गिरते ही मां नंदा ने दर्शन दिए और कहा तुम मेरे धर्म भाई हो। और जीभ न होने के कारण ही इन्हें लाटू नाम दिया गया।

लाटू देवता का मंदिर साल में सिर्फ एक बार वैशाख महीने के पूर्णिमा को खुलता है और इसी दिन पुजारी बंद आँखों से यानी पट्टी बांधकर और नाक में भी कपड़ा बांधकर पूजा करता है और उस पूरे दिन विष्णु सहस्रनाम और भगवती चंडिका का पाठ यहाँ किया जाता है। यहाँ ये माना जाता है कि मंदिर के अंदर नागों के देवता नागराज अपनी अद्भुत मणि के साथ विराजित है, और उस मणि में बहुत ज्यादा तेज होने के कारण अगर खुली आँखों से पूजा की जाए तो आँखों के रोशनी भी जा सकती है।


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