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16 जून 2013 की वो काली रात जब केदारनाथ में सब कुछ खत्म हो गया था, 3187 श्रद्धालुओं का आज तक पता नहीं

उत्तराखंड में  साल 2013 में आयी भीषण आपदा को भला कौन भूल सकता है। को सबसे भीषण जल प्रलय आज ही के दिन यानी 16 जून को हुआ था। केदारनाथ में आई इस जल प्रलय ने हजारों जिंदगियां लील लीं थी। केदारनाथ और प्रदेश के सभी पहाड़ी जिलों रूद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर, पिथौरागढ़ की करीब नौ लाख आबादी आपदा की जद में आ गई थीं। सड़कें, पुल और संपर्क मार्ग ध्वस्त हो गए थे। 13 नेशनल हाईवे, 35 स्टेट हाईवे, 2385 जिला व ग्रामीण सड़कें व पैदल मार्ग और 172 बड़े और छोटे पुल बाढ़, भूस्खलन और भारी बारिश में नष्ट हो गए थे। आपदा के दौरान 4200 से ज्यादा गांवों से पूरी तरह संपर्क टूट गया था। 2141 भवन पूरी तरह से ध्वस्त हो गए थे।

11759 भवनों को आशिंक क्षति पहुंची थी। तीन हजार से ज्यादा भवनों को सामान्य हानि हुई थी। 995 सरकारी भवन जिनमें स्कूल भवन भी शामिल थे, उनका अस्तित्व मिट गया। 11091 मवेशी मारे गए, 1308.96 हेक्टेयर कृषि भूमि बह गई थी। 2013 की केदारघाटी आपदा में समा गए 3187 श्रद्धालुओं का आज तक भी कोई नामोंनिशां नहीं मिल पाया है। पांच साल तक चले सर्च आपरेशन में अब तक 699 नरकंकाल मिल चुके है, जिनमें से 33 का ही डीएनए मिलान हो सका है। आपदा में अपनों को गंवाने वाले परिवारों के जख्म आज भी हरे हैं। अधिकांश लोगों को बस इस बात का रंज जरूर है कि उन्हें अपनों का कांधा नसीब नहीं हो सका।

16 जून 2013 की रात केदारनाथ, गौरीकुंड समेत कई स्थानों पर हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे। आपदा के बाद मची अफरातफरी में इंसानी जिंदगियां तिनके की तरह बिखरती चली गई। भयावह हालात के चलते दो दिन तक फंसे लोगों को राहत तक नहीं पहुंच सकी थी।


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