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जीते जी सरहद पर की देश की रक्षा और मरने के बाद भी पांच लोगों को नई जिंदगी दे गया फौजी

आखिर क्यूँ हर भारतीय अपने देश के हर एक जवान को गर्व भरी निगाहों से देखता है उसका एक और जीता जागता उदाहरण उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में देखने को मिला है। जब तक एक फौजी जीवित रहता है तबतक तो वह सरहद पर देश की रक्षा करता ही है लेकिन मरने के बाद भी वो नेकी के ऐसे काम कर जाता है कि जिससे पूरी दुनियां उसे सलाम करती है। देहरादून के मिलिट्री हॉस्पिटल में जिन आंखों ने सालों तक देश की सरहद की निगहबानी की, उन आंखों से अब दो लोग दुनिया का दीदार करेंगे। ये आंखें उस पूर्व फौजी की हैं, जिसने शुक्रवार को दून में अंतिम सांस ली। उनके अंगों (किडनी, लीवर और दोनों आंखें) को सेना और पुलिस ने ग्रीन कॉरिडोर बनाकर देहरादून से दिल्ली पहुंचाया है।

भले ही पूरी राजधानी देहरादून जाम के झाम से कराहती रहती हो और चंद मिनटों के सफ़र में भी घंटों लग जाते हों पर मात्र 35 मिनट के समय में पूर्व फौजी के अंगों को मिलिट्री हॉस्पिटल से देहरादून के जॉलीग्रांट एअरपोर्ट पहुँचाया गया। इसके बाद लगभग 85 मिनट में इन अंगों को राष्ट्रीय राइफल (आरआर) अस्पताल दिल्ली पहुंचा कर जरूरतमंद व्यक्तियों में प्रत्यारोपित कर दिया गया है। ये पूरा वाकया है बीते दिन 29 मार्च का जब शुक्रवार को मिलिट्री अस्पताल में एक पूर्व फौजी को ब्रेन डेड घोषित किया गया था। उन्होंने मृत्यु पूर्व अपने अंगों को दान करने की घोषणा की हुई थी। उनकी मृत्यु की सूचना पर आर्मी हॉस्पिटल दिल्ली से रिसर्च व रेफरेल विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम वायुसेना के विशेष विमान से दून पहुंची।

इसके बाद सेना और उत्तराखंड पुलिस की मदद से मिलिट्री हॉस्पिटल से जौलीग्रांट एयरपोर्ट तक ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। जिसमें टीम को सुबह 11.30 बजे से 35 मिनट में जौलीग्रांट एयरपोर्ट तक पहुंचाया गया। वहां से विशेषज्ञों की टीम पूर्व फौजी की किडनी, लीवर और दोनों आंखें लेकर वायुसेना के विमान से तत्काल दिल्ली स्थित आर्मी हॉस्पिटल पहुंची। वहां पांच मरीजों को यह अंग ट्रांसप्लांट कर दिए गए। इस पूरी प्रक्रिया में महज 85 मिनट का ही समय लगा है। इस पूरी प्रक्रिया में थलसेना, वायुसेना, पुलिस और उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग के बीच बेहतरीन तालमेल नजर आया।

क्या होता है ग्रीन कॉरिडोर?

ग्रीन कॉरिडोर शब्द का चिकित्सा विज्ञान में तब इस्तेमाल किया जाता है जबकि आपात स्थिति में किसी मरीज को जरूरी चिकित्सा की आवश्यकता होती हो। ग्रीन कॉरिडोर की आवश्यकता तब पड़ती है, जब अंग प्रत्यारोपण या किसी दिल या लीवर जैसी गंभीर परिस्थिति के लिए मरीज या अंग जिसका प्रत्यारोपण किया जाना है, उसको एक से दूसरे स्थान तक लेकर जाने के लिए कम से कम समय की आवश्यकता होती है।


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