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भारत का सबसे पुराना वृक्ष देवभूमि में है इस जगह, ऐसा चमत्कार कि वैज्ञानिक भी हैरान

मान्यता है कि जब देवताओं और राक्षसों के मध्य समुद्र मंथन किया जा रहा था तो समुद्र मंथन से 14 रत्न प्राप्त हुए थे इन्हीं रत्नों में से एक रत्न था पारिजात वृक्ष जिसे देवताओं के राजा इंद्र को दिया गया था और फिर इस इंद्र ने हिमालय के उत्तर में स्थित सुरकानन वन में स्थापित किया था। ये वृक्ष पौराणिक औषधिय और अधाय्त्मिक महत्व वाला कल्पवृक्ष है, इस वृक्ष को पृथ्वी का पारिजात और भारत का सबसे पुराना वृक्ष  माना जाता है और ये स्थित है जोशीमठ के ज्योतिर्मठ में। इस पीपल के वृक्ष पर असंख्य शाखायें है और इसका व्यास लगभग 22 मीटर का है और उंचाई लगभग 170 फीट। इस वृक्ष की उम्र लगभग 2500 साल मापी जाती है।

मान्यता है कि इसी पीपल के वृक्ष के नीचे आदिगुरू शंकराचार्य ने तपस्या की थी और यहीं पर ही उन्हें दिव्य ज्ञान भी प्राप्त हुआ था जिसके बाद ही आदिगुरु ने भारत में चारों दिशाओं में चार पीठों की स्थापना की थी और हिन्दू धर्म को एकता के सूत्र में पिरोया था। आदिगुरू शंकराचार्य यहीं से बदरीनाथ धाम पहुंचे थे जहाँ उन्होंने नारद कुंड से भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति निकालकर मंदिर के गर्भगृह में स्थापित की थी। इसीलिए आदिगुरू शंकराचार्य को बद्रीनाथ धाम का संस्थापक कहा जाता है जो आज दुनियांभर के करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है।

माना जाता है कि इस कल्पवृक्ष के नीचे अपार सकारात्मक उर्जा है जो भी यहाँ आता है और सच्चे मन से जो भी मांगता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। कल्पवृक्ष की सही उम्र को लेकर कुछ मतभेद भी हैं क्यूंकि आदिगुरू शंकराचार्य 8वीं सदी में ज्योतिर्मठ आये थे तो कुछ लोग इसकी उम्र 1200 साल मानते हैं। लेकिन कुछ विद्वान मानते हैं कि शंकराचार्य का काल युधिष्ठिर संवत से है जिसका वर्णन केदारखंड में भी है तो जितने वर्ष पहले ज्योतिष्पीठ की स्थापना हुई उतने वर्ष पूर्व ही कल्पवृक्ष को भी हो गये हैं। वनस्पति वैज्ञानिक भी कल्पवृक्ष की उम्र को लेकर हैरत में हैं क्यूंकि भारत का वन अनुसंधान संस्थान इस पेड़ की उम्र की गढ़ना साल 1992 से कर रहा है लेकिन अब तक भी उसे इस पेड़ की सही उम्र का आकलन नहीं हुआ है।


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