लॉकडाउन के कारण अलग-अलग राज्यों में फंसे प्रवासी उत्तराखंडी लोग जैसे-तैसे अपना ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं। पर अब एक ताजा खबर के आने के बाद से उन सभी की नींद उड़ गयी है क्यूंकि अब उन सभी को लाना संभव नहीं लग पा रहा है। अब तक देशभर में वो लोग अप्लाई तो कर ही रहे थे जो रास्तों में कहीं फंसे हुए थे लेकिन बड़ी संख्या में वो लोग भी शामिल थे जो लम्बे समय से अन्य राज्यों में किराए के घरों पर रह रहे हैं या अन्य किसी तरीके से रह रहे हैं। उत्तराखंड लौटने के लिए देशभर से 1.5 लाख लोगों ने रजिस्ट्रेशन तो कराया है, लेकिन घर वापसी का मौका अब सिर्फ 10 फीसदी लोगों को ही मिल पाए। एक रिपोर्ट के अनुसार दूसरे राज्यों के राहत कैंपों में तीन हजार से कुछ ही ज्यादा लोग रह रहे हैं। जबकि, राज्य के भीतर राहत कैंपों में रहने वाले लोगों की संख्या चार हजार के करीब है।
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अब तक सरकार 1400 लोगों को वापस ला चुकी है। जबकि उत्तराखंड से बाहर 2500 से ज्यादा लोगों को भेज भी चुकी है। यदि रास्तों में फंसे लोगों को भी जोड़ा जाए तो इनकी संख्या ज्यादा नहीं होगी। उत्तराखंड सरकार का कहना है कि केवल उन्हीं लोगों को यहां लाया जाएगा, जो राहत कैंपों में रह रहे हैं। या फिर कहीं रास्ते में फंसे हुए हैं। केंद्र सरकार की नयी गाइडलाइन और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की इस ताजा फैंसले के बाद हर कोई हैरान है क्यूंकि बाहरी राज्यों से अब तक 1.5 लाख लोग उत्तराखंड में वापसी के लिए रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं जिसकी जानकारी खुद प्रदेश सरकार द्वारा अब तक दी गयी है जबकि एक से 2 लाख के करीब ऐसे लोग हैं, जो कुछ दिन बाद ऑनलाइन अप्लाई करने की योजना बना रहे थे।
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सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और उत्तराखंड सरकार के खिलाफ लोग जमकर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। आपको बता दें पिछले कुछ दिनों से प्रदेश सरकार ऑनलाइन लिंक के साथ ही कई नम्बर भी जारी कर चुकी थी जिनपर कोई भी प्रवासी उत्तराखंडी अप्लाई कर सकता था। आपको बता दें जिन प्रवासियों को उनके गांवों में भेजा गया है उन सभी को गाँव के ही विद्यालयों या आंगनबाड़ी केन्द्रों में ग्राम प्रधान को क्वारनटीन करने की जिम्मेदारी दी गयी है और अधिकतर जगहों पर खाने की व्यवस्था और बाथरूम में दिक्कतों की भी शिकायत मिल रही है और इस बात से भी लोगों में नाराजगी बढ़ रही है।