गढ़वाल की सभी शादियों मे एक कलेऊ (बांटने के लिए मिठाई) बनता है जिसको सभी गाँव वालो और रिश्तेदारों को दिया जाता है और उस कलेऊ की सबसे फेमस मिठाई है अरसा…आज भी हमारे उत्तराखंड मे हर शादी-समारोह में सबसे पहले अरसे ही बनते हैं. इसे एक बार मुंह में रख लीजिए, तो कभी ना भूलने वाली मिठास मुह में घुल जाती है। आज खाइए या कल खाइए या एक महीने बाद, अरसे का स्वाद ताउम्र एक जैसा रहेगा। अक्सर हम जब गांव की शादी में जाते है तो सुबह-सुबह गांव की महिलाओं को भीगे हुए चावल कूटने के लिए बुलाया जाता है जिसे पीडू कहा जाता है और गाँव के बुजुर्ग स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं जिसमें गुड़ की मिठास, सौंफ, चावल का आटा मिलाकर मिश्रण तैयार किया जाता है. मैं अभी दस दिन पहले ही शादी मे गया था आरसो का जो स्वाद मुझे अपने गाँव मे मिला शायद ही वो कही बाहर से मोटी रकम देने के बाद बी ना मिले. लेकिन क्या आप जानते है गढ़वाल में शादी समारोह में अरसे क्यों बनते हैं और ये चलन कहां से आया..तो आईये आपको बताते है इसका इतिहास-
अरसे का कनेक्शन बेहद धार्मिक है। दरअसल जगतगुरू शंकराचार्य ने बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके अलावा गढ़वाल में कई ऐसे मंदिर हैं, जिनका निर्माण शंकराचार्य ने करवाया था। इन मंदिरों में पूजा करने के लिए दक्षिण भारत के ही ब्राह्मणों को रखा जाता है। कहा जाता है कि नवीं सदी में दक्षिण भारत से ये ब्राह्मण गढ़वाल में अरसालु लेकर आए थे। क्योंकि ये काफी दिनों तक चल जाता है, तो इसलिए वो पोटली भर-भरकर अरसालु लाया करते थे। धीरे धीरे इन ब्राह्मणों ने ही स्थानीय लोगों को ये कला सिखाई। गढ़वाल में ये अरसालु बन गया अरसा। 9वीं सदी से अरसालु लगातार चलता आ रहा है, यानी इतिहासकारों की मानें तो बीते 1100 सालं से गढ़वाल में अरसा एक मुख्य मिष्ठान और परंपरा का सबूत था।
कैसे बनाये –
अरसा बनाने के लिए चावल को लगभग 10 घंटे पहले भिगो दें। फिर चावल को कूट लें और उसे आटे के समान छानकर अलग रख लें। गुड़ की दो तार की चाशनी बनाएं और उसमें चावल के इस आटे को गूंथ लें और अब उससे छोटी—छोटी लोइयां बनाकर पकोड़ी की तरह गरम तेल में तलें। जब इनका रंग गुलाबी हो जाये तो उन्हें अलग से निकाल लें। उन्हें चाशनी में डाल दें। कुछ समय बाद परोस लें।