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उत्तराखंड में सलाम है ऐसी दिव्यांग शिक्षिका को, खेल-खेल में बच्चों की प्रतिभा निखारी, मिलेगा शैलेश मटियानी पुरस्कार

आप सभी ने ये कहावत तो सुनी ही होगी कि—

मंजिलें उन्ही को मिलती हैं

जिनके सपनों में जान होती है

सिर्फ पंखों से कुछ नहीं होता, दोस्तों

हौसलों से उड़ान होती है।।

ये एक ऐसी कहावत  है जिसके बारे में हम आपको आज बता रहे हैं वो इसे चरितार्थ करती हैं, क्यूंकि जिन साहसी लोगों में कुछ कर गुजरने की चाहत होती है उन्हें बढ़ी से बढ़ी परेशानी भी पार हो जाती है, ऐसी ही एक शिक्षिका शशि कंडवाल हमारे सामने एक जीता जागता हुआ उदाहरण हैं जिनके लिए शारीरिक अक्षमता भी कोई मायने नहीं रखती है।

शिक्षिका शशि कंडवाल खेल खेल में ही बच्चों की प्रतिभा को निखारने में वर्षों से लगी हुई हैं उनकी इसी लगन का ही कारण है जब उनके कार्यकाल के दौरान प्रावि ग्वाड़ से वर्ष 2015 में अंताक्षरी और 2016 में सुलेख प्रतियोगिता के नौनिहालों ने राज्यस्तर पर प्रतिभाग किया था। दिव्यांग शशि कंडवाल को अपनी पहली पोस्टिंग मार्च 2000 को प्रखंड कर्णप्रयाग के प्रावि जस्यारा हुई थी उसके बाद 3 वर्ष प्रावि किमोली में इसके बाद  2005 से 2017 तक प्रावि ग्वाड़ में तैनात रही और फिर  2017 के बाद बतौर प्रधानाध्यापिका प्रावि लंगासू में तैनात हुई हैं।

इनकी मेहनत और लगन का ही नतीजा है जहाँ एक ओर हर साल प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की संख्या कम होती जा रही है वहीँ दूसरी तरफ शिक्षिका शशि कंडवाल की तैनाती जहाँ भी रही हैं उन्होंने वहां छात्रों की संख्या अधिक ही की है, क्यूंकि उस गाँव के लोगों को पता है कि शिक्षिका की तैनाती के बाद उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित हाथों में है। और अब इसी मेहनत को देखते हुए उन्हें शैलेश मटियानी पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है जिससे  शिक्षक जगत और क्षेत्र के लोगों में खुशी का माहौल है।