भारतीय सेना के एक जवान के जज्बे की तारीफ इस समय पूरी दुनियां में हो रही है और हो भी क्यूँ नहीं क्यूंकि जवान का काम ही इतना शानदार है। इस समय लॉकडाउन के कारण पूरे भारत में जो जहाँ है वो वहीँ फंसा हुआ है। ऐसे ही सेना का एक जवान संतोष यादव इन दिनों अपनी ड्यूटी पर छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल (सीएएफ) 15वीं वाहिनी के बीजापुर जिले के अति नक्सल प्रभावित धनोरा में तैनात थे। इस बीच संतोष यादव की माँ का देहांत हो गया पर लॉकडाउन में नक्सल मोर्चे पर तैनात जवान अपनी मां के अंतिम दर्शन नहीं कर पाया। निधन की खबर मिलने पर उसे अवकाश तो मिल गया, लेकिन लॉकडाउन ने ऐसे फंसाया कि तीन दिनों से वह रास्ते में ही फंसा रहा गया।
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इस दौरान संतोष पैदल, ट्रक और मालगाड़ी से घर पहुंचने की जद्दोजहद में लगे हुए थे। संतोष के अनुसार सात अप्रैल को उसकी छुट्टी स्वीकृत की गई। फोर्स से गाड़ी नहीं मिली, इसलिए पैदल ही कैंप से घर के लिए निकले। रायपुर से करीब 200 किलोमीटर दूर कोंटागांव में एक मिनी ट्रक का मैंने दो घंटे तक इंतजार किया। वहां पुलिस को मैंने अपनी स्थिति बताई। वहां तैनात एक अधिकारी मुझे जानते थे। उन्होंने दवाई ले जाने वाले वाहन से रायपुर तक पहुंचाने में मेरी मदद की। 10 अप्रैल की सुबह यूपी के चुनार पहुंचे, जो संतोष के गांव का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन था। इसके बाद गांव तक पहुंचने के लिए गंगा में नाव की सवारी करनी पड़ी और तीन दिन बाद जाकर अब अपने घर पहुंच सके हैं।
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संतोष का छोटा भाई सुरेश मुंबई में एक निजी कंपनी में कार्यरत है। छोटी बहन की ससुराल भी मुंबई में ही है। लॉकडाउन के चलते वे दोनों भी मां के अंतिम संस्कार में नहीं पहुंच सके थे। पिता जयप्रकाश यादव ने रिश्तेदारों की मौजूदगी में उनका अंतिम संस्कार किया। संतोष का कहना है कि ऐसी स्थिति में वह अपने पिता को अकेला नहीं छोड़ सकते थे। इसलिए तमाम चुनौतियों को पार कर वो अब अपने घर पहुँच गए हैं। यात्रा के दौरान इतनी कठिनाइयों के बावजूद, संतोष यादव का कहना है कि वह लॉकडाउन का समर्थन करते हैं क्योंकि यह लोगों की सुरक्षा के लिए लगाया गया है।