यह पूरा मामला रानीखेत की द्वाराहाट तहसील के ग्राम टोडहरा के रहने वाले किसान गौरी दत्त भट्ट के परिवार का है। गौरी दत्त जी के पांच बेटे, दो बेटियों में भुवन भट्ट सबसे बढ़े बेटे थे। भुवन भट्ट एमबीबीएस करने के बाद 1982 में में उनका चयन भारतीय सेना में कमीशन अधिकारी के रूप में हुआ। छोटे भाई बहनों की जिम्मेदारी होने के कारण उन्होंने विवाह नहीं किया। 18 अगस्त 1993 को नैनीताल घूमने निकलने के बाद लापता हो गए। 16 दिन बाद मेजर भुवन की लाश नैनीताल के समीप हनुमानगढ़ी के जंगल में मिली थी। और आज तक ये रहस्य बना हुआ है की मेजर साहब की मौत हुई थी या उनकी हत्या की गयी थी।
जो बेटा माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा था, 25 साल पहले उसकी अचानक मौत हो गई। फौज में मेजर के पद पर तैनात बेटे की लाश मिली और मौत कैसे हुई? यह रहस्य आज भी बरकरार है। सरकारी तंत्र के काम करने के तौर तरीके से तो आप सब परिचित ही होंगे। एक पिता जो अपने मेजर बेटे की हत्या के बाद पहले ही सदमें में था वो पेंशन के लिए वर्षों तक इधर से उधर सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। पेंशन मांगते-मांगते और बेटे की मौत के सदमे की वजह से वो भी दुनिया से चल बसे। और अब माँ और छोटे भाई की 25 साल के मेहनत के बात बूडी माँ को पेंशन मिल पायी है।
युगल किशोर भट्ट जो कि भुवन भट्ट के छोटे भाई हैं उन्होंने जिला सैनिक कल्याण अधिकारी मेजर बीएस रौतेला से मुलाकात की। मेजर बीएस रौतेला ने कहा कि मेजर भुवन भट्ट की मां तारा देवी की पेंशन लागू कर दी गयी है। उन्हें पेंशन के साथ ही वर्ष 1993 से अब तक के एरियर का भुगतान भी होगा।