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खुल गए भगवान केदारनाथ के कपाट, जानिये शिव क्यों आए केदार धाम और मंदिर का महत्व

आज यानी 9 मई की सुबह 5 बजकर 35 मिनट पर जय केदार के जयकारों के बीच भगवान केदारनाथ के कपाट आम भक्तों के दर्शनार्थ खुल गए हैं। बाबा की पंचमुखी मूर्ति केदार मंदिर में विराजमान हो गयी है। अब अगले छह महीने तक बाबा केदार यहीं पर श्रद्धालुओं को दर्शन देंगे। इस मौके का साक्षी बनने के लिए वहां सुबह 5 हजार से अधिक भक्त मोजूद थे। तड़के बाबा केदार की उत्सव डोली को मुख्य पुजारी केदार लिंग द्वारा भोग लगाया गया। और नित पूजाएं की गई, जिसके बाद डोली को सजाया गया। केदारनाथ रावल भीमाशंकर लिंग, वेदपाठियों, पुजारियों, हक्क हकूकधारियों की मौजूदगी में कपाट पर वैदिक परंपराओं के अनुसार मंत्रौच्चारण किया गया।

सेना की जम्मू-कश्मीर लाईट इंफेंटरी के बैंड की धुनों के साथ पूरा केदारनाथ धाम भोले बाबा के जयकारों से गुंजायमान हो गया था। गढ़वाल मंडल आयुक्त डॉ. बीवीआरसी पुरुषोत्तम, जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल सहित अन्य अधिकारी भी धाम में इस मौके पर उपस्थित थे। बाबा केदार के धाम को मंदिर समिति द्वारा गेंदा और अन्य प्रकार के 15 कुंतल फूलों से सजाया गया है। केदारनाथ धाम की पैदल यात्रा इस बार श्रद्धालुओं के लिए रोचक और नए अनुभवों को संजोने वाली साबित हो रही है। देश के विभिन्न प्रांतों से पहुंच रहे शिव भक्तों, विशेषकर युवा पीढ़ी विशालकाय हिमखंड व बर्फ की मोटी चादर देखकर गदगद हो रहे हैं।

महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन भगवान पांडवों से रुष्ट थे। पांडव शिव को खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वह अंर्तध्यान होकर केदार में जा बसे। वहां शिव ने बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया। भीम ने विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए। सब गाय-बैल तो वहां निकल गए, लेकिन बैल बने भगवान शिव पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम उस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में समाने लगा। भीम ने बैल की पीठ का भाग पकड़ लिया। इस पर भगवान शिव पांडवों की भक्ति देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। तब से भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।


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