थोड़ी देर के लिए जो हम यहाँ कह रहे हैं उसपर आपको भरोसा नहीं होगा लेकिन बात है पूरी 16 आने सच। क्यूंकि जो हाल इन दिनों उत्तराखंड रोडवेज का है और आप इसमें सफ़र करने की यौजना बना रहे हैं तो साथ में छाता लेकर जरुर चलिए। रोडवेज बसों की हालत से आप पहले ही भली भांति परिचित है कि अधिकतर वाहन बाबा आजम के जमाने के हैं। ये बसें केवल स्थानीय मार्गों पर ही नहीं, बल्कि लंबी दूरी के लखनऊ जैसे मार्ग पर भी दौड़ रही हैं और जो समस्या हम यहाँ बता रहे हैं वो है इन बसों की छत लगातार टपक रही और यात्री खड़े होकर सफर करने को मजबूर हो रहे।
बसें कहां दम तोड़कर खड़ी हो जाएं, कोई गारंटी नहीं। रोडवेज की करीब 450 बसें आयु सीमा पूरी कर चुकी हैं मगर प्रबंधन इन्हें रास्ते पर दौड़ाए जा रहा। लंबे अर्से से इन बसों की जर्जर हालात ठीक करने की मांग कर्मचारी उठाते रहे हैं, लेकिन प्रबंधन एवं सरकार की उदासीनता से बसों की हालत ठीक नहीं हो पा रही है। उत्तराखंड सरकार पिछले आठ माह से सूबे में 300 नई बसें लाने का दावा कर रही है, मगर बसें कब आएंगी, और ये योजना कहाँ तक आगे बड़ी है इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है।
देहरादून से पांवटा, ऋषिकेश, सहारनपुर, हरिद्वार आदि स्थानीय मार्गों पर चलने वाली बसों में छत टपकना तो आम बात पहले से ही थी लेकिन अब लखनऊ जाने वाली ग्रामीण डिपो की साधारण सेवा में छत टपकने की शिकायतें आ रहीं। यह हालात बने कि यात्रियों को सीट से उठकर खड़े होकर सफर करना पड़ा। सामान तक भीग रहा है, ग्रामीण डिपो समेत हरिद्वार और रुड़की, ऋषिकेश, कोटद्वार, काशीपुर तक में जर्जर बसों की समस्या से यात्रियों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा। चालकों ने बताया कि पुरानी बसों में शीशे के फ्रेम भी खराब हैं, जिससे खिड़की रास्ते पानी बसों के अंदर आता है। बसों में वाइपर नहीं होने से तेज बरसात में हादसे का खतरा बना रहता है।