बात है शनिवार 1 दिसम्बर की जब जम्मू-कश्मीर के पलांवाला सेक्टर के छपरयाल फायरिंग रेंज में भारतीय सेना का दल युद्ध अभ्यास कर रहा था घटना के दौरान आरएल का एक गोला दागा गया लेकिन जब वो फटा नहीं तो इसके बाद गोले को सुरक्षित अलग निकालने की गतिविधि शुरू कर दी थी और जैसे ही जवान गोले के पास पहुंचे वो अचानक फट गया और ये धमाका इतना जोरदार था कि इसके पास खड़े जवान सुरजीत सिंह राणा और सूरज सिंह की मौके पर ही मौत हो गयी थी जबकि संदीप कुमार बुरी तरह से घायल हो गये थे।
शहीद हुए दोनों जवान देवभूमि उत्तराखंड से हैं जवानों की पहचान सुरजीत सिंह निवासी सियून, चमोली उत्तराखंड व सूरज सिंह बखानी निवासी पालड़ी, तोली-अल्मोड़ा के रूप में हुई है। सूरज सिंह बखानी अभी एक हफ्ते पहले ही अपनी छुट्टियाँ खत्म करके वापस जम्मू-कश्मीर चले गये थे सूरज ने अपने घर से विदा लेते समय दादी, पिता और मां सीता देवी के चरण छूकर जल्द घर आने की बात कही थी और बहन की शादी धूमधाम से कराने का वादा किया था। पर नियति को कुछ और ही मंजूर था क्यूंकि बहन को दुल्हन के जोड़े में देखने से पहले ही देवभूमि का लाल शहीद हो गया। शहीद के पिता नारायण सिंह भाकुनी कहते हैं कि मौत तो सबको आनी है, लेकिन मुझे गर्व है कि उनका बेटा देश के लिए शहीद हुआ है।
सूरज की शहादत की खबर मिलने के बाद बीती रविवार को गांव में अजीब सा सन्नाटा पसर गया है और ये बात अब तक घर में केवल सूरज के पिता को पता है और बाकी घरवालों को सिर्फ ये जानकारी है कि उसे हादसे में चोट लगी है, लेकिन अब वह ठीक है। यही कारण है कि शहादत से अंजान मां सीता देवी रोजमर्रा की तरह गाय के लिए चारा तैयार कर रही थी तो बहन राधा चूल्हा जलाने को आंगन में लकड़ी एकत्र कर रही थी दादी रूपली देवी घर की दो मंजिले पर खड़ी थीं। शहीद सूरज ही घर में एकमात्र कमाने वाला था उसने नया घर बनाने के लिए पिता को पैसे भी दिए थे सूरज के छुट्टी में आने के दौरान नया घर बनकर तैयार भी हो गया था। सूरज की कमाई से ही घर का खर्चा चल रहा था और बीती छुट्टियों में वो अपनी बहन की शादी के लिए जेवर भी बनाकर चले गये थे और आगामी मई-जून में सूरज की बहन की शादी होने थी जब गाँव वाले सूरज से खुद की शादी की बात करते थे तो सूरज कहता था कि अभी बहन के हाथ पीले करने हैं उसके बाद अपने लिए सोचूंगा।