जखराजा की शक्ति और चमत्कार से आसपास के लोग तो बहुत पहले से परिचित हैं ही, लेकिन जिन लोगों को नहीं पता है उनके लिए आज हम ये बात यहाँ बता रहे हैं। दरसल होता यह है की वैशाखी के मेले के अवसर पर गुप्तकाशी के नजदीक स्थित एक जगह है जाखधार जहाँ दो दिवसीय मेले का सामूहिक भोज का आयोजन क्षेत्रवासियों की तरफ से हर साल किया जाता है, जाख मेला समिति के अंतर्गत चलने वाला जाख मेला क्षेत्र के कोठेडा, नारायणकोटी व देवशाल समेत इलाके के 14 गांवों की आस्था से जुड़ा हुआ है।
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भक्तगण भजन-कीर्तन का आयोजन करते हैं और जाखराजा के लिए अंगारे भी तैयार किये जाते हैं और फिर जाख देवता के पश्व, देवता के निशान को गाजे-बाजों ढोल दमाऊं के साथ जाखधार मंदिर लाया जाता है। इसके पश्चात भगवान जाखराजा को उनके स्थान पर बिठाकर गंगा जल से स्नान कराया जाता है।
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इन सबके बाद भगावान की अलौकिक शक्ति का चमत्कार यहाँ देखने को मिलता है क्यूंकि पश्व पर नर रूप में देवता अवतरित हो जाते हैं और जाखराजा अग्निकुंड में प्रज्वलित अंगारों में प्रवेश करते हैं। जहाँ दहकते अंगारों में काफी देर तक नृत्य करने के साथ साथ जाखराजा भक्तों को आशीर्वाद भी देते हैं। इस अविस्मरणीय नज़ारे के दौरान भक्तों की आँखों में आंसू भी आ जाते हैं और वो फिर मेला संपन्न होने के उपरान्त अंगारों से तैयार हुई राख को प्रसाद के रूप में अपने घरों को ले जाते हैं इसके साथ ही जिस भक्त को जाखराजा का आशीर्वाद मिलता है उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण हो जाती है।
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देश और उत्तराखंड पर मंडराते कोरोना संक्रमण के चलते इस वर्ष जाखधार मंदिर में लगने वाला जाख देवता का मेला ही स्थगित कर दिया गया है। सिर्फ विधि-विधान से मंदिर में पूजा-अर्चना ही की जाएगी। ऐसे में श्रद्धालु 14 अप्रैल को (2 गते बैसाख) जाख देवता के पश्वा को धधकते अंगारों में नृत्य करने के अविश्वसनीय लम्हे को नहीं देख पाएंगे।