Home उत्तराखंड तुम मांगते हो उत्तराखंड कहा से लाऊं?

तुम मांगते हो उत्तराखंड कहा से लाऊं?

जिसने भी कहा है बहुत ही सुन्दर कहा है सच कहा है-एक कविता आपके लिए लेकर आयें हैं जिसे एक बार जरूर पढ़ें-

तुम मागते हो उत्तराखंड कहा से लाऊ?

सूखने लगी गंगा, पीघलने लगा हीमालय!

उत्तरकाशी है जख्मी, केदारनाथ है उजड़ा…पीथोरागढ़ है घायल!

बागेश्वर को है बेचेनी, पौडी मे है बगावत!

कीतना है दिल मे दर्द, कीस-कीस को मैं दीखाऊ!

तुम माग रहे हो उत्तराखंड कहा से लाऊ?

मडुवा, झंगोरे की फसले भूल!

खेतो मे जीरेनीयम के फूल!

गांव की धार मे रीसोर्ट बने!

गांव के बीच मे स्वीमिंग पूल!

कैसा वीकास? क्यों घमंड?

तुम मागते हो उत्तराखण्ड??

खद्दंजो से वीकास की बातें,

प्यासे दीन अँधेरी रातें,

जातीवाद का जहर यहाँ,

ठेकेदारी का कहर यहाँ,

घुटन सी होती है आखीर कहा जाऊ?

तुम मागते हो उत्तराखण्ड कहा से लाऊ

वन कानूनों ने छीनी छाह,

वन आवाद और बंजर गांव,

खेतो की मेडे टूट गयी,

बारानाजा संस्कृती छुट गयी,

क्या गडवाल? क्या कुमाऊ?

तुम माग रहे हो उत्तराखण्ड कहा से लाऊ??

लुप्त हुए स्वालंबी गांव,

कहा गयी आफर की छाव?

हथोडे की ठक-ठक का साज,

धोकनी की गरमी का राज,

रीगाल के डाले और सूप,

सैम्यो से बनती थी धुप,

कहा गया ग्राम्य उधोग ?

क्यों लगा पलायन का रोग?

यही था क्या ” म्योर उत्तराखण्ड” भाऊ?

तुम मागते हो उत्तराखण्ड कहा से लाऊ?

Copy Right @ Hem Bahuguna

 


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