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53 साल पहले चीन को रोकने की एक कोशिश, कहीं अब उत्तराखंड को भारी न पड़ जाए

भारत चीन के साथ सन 1962 में हुई जंग में हार चुका था, क्यूंकि उस जंग में चीन ने भारत के साथ विश्वासघात किया था जब उसने हमारी खुली सीमाओं पर हमला कर दिया था, इस पूरे युद्ध में भारत को काफी नुकसान हुआ था। युद्ध के बाद सीमाओं को चौकस रखने के लिए भारत ने सीमाओं पर रडार लगाने का निर्णय लिया इसी निर्णय में एक रडार उत्तराखंड में सबसे ऊँची चोटी यानी नंदा देवी पर भी लगना निश्चित हुआ था। बात साल 1965 की है जब भारत अमेरिका के सहयोग से  नंदा देवी में रडार लगा रहा था।

रडार लगाने से पहले जब प्लूटोनियम पैक नंदा देवी की चोटी पर ले जाया जा रहा था तो उस दौरान वहां बर्फीला तूफान आ गया और हिमस्खलन में यह पैक नंदादेवी में बर्फ में ही कहीं दब गया था। उसके बाद 2 साल बाद यानी 1967 में पुनः एक दूसरा प्लूटोनियम पैक नंदा देवी की चोटी पर ले जाया गया और तब जाकर वहां रडार स्थापित किया गया। लेकिन जो पहला प्लूटोनियम पैक वहां दबा हुआ था उसकी आज तक ढंग से सुध नहीं ली गयी है, वो पैक आज भी वहां की पहाड़ियों में ही दबा हुआ है, इससे निकट भविष्य में गंभीर खतरा भी हो सकता है। इस ग्लेशियर से आता हुआ पानी गंगा नदी में मिलता है तो अगर कहीं सच में ऐसा कुछ होता है तो देवभूमि के पर्यावरण के साथ ही गंगाजल पर गलत असर पड़ सकता है।

इसी सिलसिले में पिछले दिनों उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री और दिग्गज नेता सतपाल महाराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की थी, और इस मुलाकात में सतपाल महाराज ने प्रधानमंत्री से यह आशंका जताते हुए इसकी गहन जांच कराने पर जोर दिया, ताकि सही स्थिति सामने आ सके। उन्होंने अपनी बात में आगे ये भी कहा कि क्यूंकि प्लूटोनियम पैक रेडिएशन लीक भी हो सकता है तो इस बात की जांच होनी चाहिए कि इससे कोई खतरा तो नहीं है जिस पर प्रधानमंत्री ने इसमें रुचि ली और कहा कि इसकी गहनता से जांच कराई जाएगी।