देवों की भूमि यानी देवभूमि और देवभूमि यानी उत्तराखंड यहाँ के तो कण-कण में देवताओं का वास माना जाता है और यही कारण है पूरी दुनियां के लोगों को यहाँ की आध्यात्मिकता अपनी ओर खिंच लाती है। आज हम यहाँ आपको एक ऐसे ही प्रसिद्ध सिद्धपीठ के बारे में बता रहे हैं जिसका नाम है मठियाणा माँ, माँ का यह मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है, यहाँ जाने के लिए आपको रुद्रप्रयाग होते हुए तिलवाड़ा पहुंचना होगा फिर यहाँ से घेघड़ होते हुए सिलगाँव तक आप सड़क से जा सकते हैं और उसके बाद की लगभग 2 किमी चढाई आपको पैदल ही नापनी होती है। वहीँ मठियाणा माँ जाने के लिए एक दूसरा मार्ग श्रीनगर के नजदीक कीर्तिनगर होते हुए बडियार गढ़ सौरखाल होते हुए डोंडा, चौरिया तक भी जाता है।
पूर्व में प्रचलित लोक कथाओं के अनुसार माँ मठियाणा देवी सिरवाड़ी गढ़ के राजवंशों की धियाण थी, इनकी शादी तिब्बत के राजकुमार यानी भोट से हुई थी पर इनकी सौतेली माँ ने ढाह वंश के कुछ लोगों के साथ मिलकर इनके पति कि हत्या कर दी थी। उसके बाद पति के मरने से दुखी होकर वो तिलवाड़ा में सूरज प्रयाग में सती हो जाती हैं फिर यहीं से ही देवी का रूप प्रकट होता है और उसके पश्चात माँ सिरवादी गढ़ में पहुंचकर दोषियों को उनका उचित दंड देती हैं, और फिर जन कल्याण की भलाई के लिए यहीं वास कर लेती हैं।
इस स्थान पर हर तीसरे साल माँ के जागर लगते हैं इसमें देवी की गाथा का बखान किया जाता है, यहां देवी का उग्र रूप है, बाद में यही रूप सौम्य अवस्था में मठियाणा खाल में स्थान लेता है। और फिर इसी मठियाणा खाल से माँ का नाम पूरी दुनियां में फैला है, मठियाणा देवी माता शक्ति का काली रूप है तथा ये स्थान देवी का सिद्धि-पीठ भी है इस जगह पूरे साल भर भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है और विशेषकर नवरात्रि में तो यहाँ भक्तों का पूरा मेला ही लगा होता है। वहीँ इस स्थान के रूप में एक दूसरी कथा यह भी है कि माता सती के अग्नि में सती होने पर भगवान शिव जब उनके शरीर को लेकर भटक रहे थे तब माता सती का शरीर का एक भाग यहाँ गिरा, बाद में इस भाग माता मठियाणा देवी कहा गया।
कहा जाता है कि माँ काली का यह रूप सबसे जागृत रूप है, जो भी भक्त यहाँ अपनी मनोकामना लेकर आता हैं माँ उसे जरुर पूरा करती है, और अगर कोई कुछ गलत करता हुआ पाया जाता है तो माँ उसे आज भी सजा देती हैं। अगर बात करैं इस स्थान यानी मठियाणा खाल की तो इसकी सुन्दरता ऐसी है कि आप यहाँ खिंचे चले आओगे, पैदल चलने वाले 2 किमी के रास्ते पर भी आपको बुरांश और काफल के पेड़ यहाँ देखने को मिल जायेंगे और रास्ता में जो थोड़ा सा थकान आपको लगती भी है वो मंदिर के द्वार पर पहुँचते ही छूमंतर हो जाती है।