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स्वरोजगार का ये तरीका भी हो सकता है, बस झिझक छोड़कर काम करने की है जरुरत

इन दिनों पूरे भारत में जिस बात की सबसे अधिक जरुरत है वो है स्वरोजगार विकसित करने की ताकि अमुक व्यक्ति खुद के लिए तो काम कर ही रहा हो और हो सके तो अपने साथ अन्य लोगों को भी जोड़ सके। इसी प्रयास में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लगातार युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करते रहते हैं और मुद्रा योजना भी स्वरोजगार को अधिक विकसित करने के लिए ही लायी गयी थी। आज के समय में जहाँ  युवा बहुत ही अधिक पढ़े-लिखे होते हैं और उनकी सोचने की शक्ति इतनी अधिक होती है कि वो अपना खुद का कुछ भी अच्छा व्यवसाय शुरू कर देते हैं।

पर अब अगर हम बात करैं ऐसे युवाओं की जो कम पढ़े-लिखे होते हैं है और जिनका बुद्धि कौशल उतना अच्छा नहीं होता है तो क्या उन्हें स्वरोजगार नहीं करना चाहिए? तो अगर आपको इसका जवाब जानना है तो वो ये है कि बेशक ऐसे युवाओं को भी स्वरोजगार अपनाना चाहिए और इसका जीता जागता उदाहरण हैं रुद्रप्रयाग जिले में बीरों गाँव के रहने वाले जगदीश सिंह राणा। बस ऐसे युवाओं को जरुरत होती है एक झिझक को खत्म करने की और वो झिझक ये कि लोग क्या कहेंगे। जगदीश सिंह राणा अपने पूरे इलाके में फेरी का काम करते है स्वरोजगार की तरफ बढते इस युवा की सोच का हर किसी को अनुसरण करना चाहिए।

इस वक्त जरुरुत है तो पहाड़ के युवाओं को अपने पहाड़ में ही रहकर रोजगार चुनना चाहिए, इसी सोच को जगदीश राणा ने युवाओं के लिए प्रेरणा का काम किया है। जगदीश से पहले भी यह काम कर कुछ लोग अच्छे मुकाम पर पहुंचे हैं और शायद इनकी भी प्रेरणा वही लोग हैं। जरुरत है तो अपने अन्दर की शर्म को खत्म करने की क्यूंकि हर काम का अपना महत्व होता है। पहाड़ में कई ऐसे परिवार हैं जो घर से बाजार आने का समय नहीं निकाल पाते हैं अब अगर जगदीश उनकी आवश्यकता का सामान उन के घर पर पहुचा रहे हैं तो अनुमान लगाओ उन की कितनी बड़ी मदद हो रही है। हमारे पिछड़ने का कारण झिझक ही है और कोई नहीं। हमारी झिझक दूर हो जाय तो तो हम एवरेस्ट फतह कर सकते हैं।


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