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देश में पहली बार 22 दिसम्बर को ही रुड़की से कलियर के बीच चली थी ट्रेन, जानिए इतिहास

आज तक भले ही हम सब इस बात से परिचित हों कि भारत के इतहास इतिहास में जब पहली बार ट्रेन चलने की बात की जाती है तो माना जाता है कि रेल के सफर की शुरुआत देश में 16 अप्रैल 1853 में हुई थी। भारत की यह पहली ट्रेन  महाराष्ट्र के बम्बई(मुबई) से थाणे के बीच चली थी। कहा जाता है कि भारत की इस पहली ट्रेन ने एक घंटे में लगभग 32 किमी का सफर तय किया,  पर जो एक और हकीकत है वो पूरी तरह से इस बात से अलग है। माना जाता है कि भारत में रेल का इतिहास सवा सौ साल पहले 22 दिसंबर 1851 को ही लिखा जा चुका है यानी कि मुंबई और थाणे की ट्रेन से भी लगभग २ साल पहले।

उत्तराखंड के इतिहास में ये बात दर्ज हो गयी है कि देश की पहली रेल ने रुड़की से पिरान कलियर तक करीब पांच किलोमीटर का सफ़र तय किया था। अगर इतिहास के पन्नों को खंगाला जाए तो पता चलता है कि हरिद्वार से कानपुर के बीच पांच सौ किलोमीटर लंबी गंग नहर बनाने वाले तत्कालीन इंजीनियर कर्नल प्रो बीटी कॉटले ने गंगनहर पर लिखी अपनी रिपोर्ट ‘रिपोर्ट ऑन द गंगनहर कैनाल वर्क्स’ में इसके बारे में बताया है। यह रिपोर्ट आज भी रुड़की स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) की सेंट्रल लाइब्रेरी में मौजूद है।

उल्लेख है कि जब 1837-1838 में उत्तरप्रदेश में सूखा पड़ा था तो उस दौरान तब फैसला लिया गया कि गंगा से नहर निकाली जायेगी और इसकी जिम्मेदारी कर्नल कॉटले को सौंपी गर्इ। नदी के ऊपर पुल (एक्वाडक्ट यानी जलसेतु) बना नहर को गुजारा गया। पुल निर्माण के लिए नदी में खंभे बनाए जाने थे और इसके लिए खुदाई करनी थी। इस दौरान ये तय किया गया कि भारी मात्रा में निकलने वाले मलबे को कलियर के पास डाला जाए। इसके लिए उन्होंने लंदन से उपकरण मंगवाए और वहीं के विशेषज्ञों से रुड़की में ही इंजन और चार वैगन तैयार कराईं।

इंजन का नामकरण उत्तर पश्चिमी प्रांत के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गर्वनर सर जेम्स थॉमसन के नाम पर किया गया। भाप से चलने वाले इस इंजन की सहायता से दो वैगनों में एक बार में 180 से 200 टन मिट्टी ढोई गई। इंजन की रफ्तार 6.4 किलोमीटर प्रति घंटा थी और पूरे एक साल यानी दिसंबर 1852 तक यह पटरियों पर दौड़ता रहा। दो साल बाद 1854 में गंगनहर का निर्माण पूरा हो गया। नहर को बनने में 12 साल लग गये थे।


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