शुक्रवार 21 दिसम्बर को दिन के 12 बजे के आसपास का वो समय जब पहाड़ में ऐसी चट्टान दरकी जिसकी चपेट में आकर 7 मजदूरों की मौके पर ही मौत हो गयी और तीन मजदूर बुरी तरह से घायल बताये जा रहे हैं और साथ ही जैसे-तैसे 12 मजदूर मौके से भागकर अपनी जान बचा पाये। मलबे की चपेट में आकर पूरा का पूरा पोकलैंड भी समा गया था इससे हादसा कितना भीषण रहा होगा इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है। ये भयानक हादसा बांसवाडा और भीरी के बीच में स्थित पहाड़ी पर हुआ है अब अगर आप आसपास के गांवों के लोगों से बात करेंगे तो वो बताएँगे कि जिस जगह पर यह हादसा हुआ है वहां पर पिछले 8-10 सालों से लगातार उपर से मलबा आता रहता था।
कई बार तो छोटे-मोटे वाहन भी इसकी चपेट में यहाँ पर आये हैं लेकिन इतनी खतरनाक जगह पर जिस तरह से मजदूरों से बिना सुरक्षा उपकरणों और संसाधनों के द्वारा काम कराया जा रहा था उससे पहली नजर में एजेंसी और ठेकेदार ही गलती तो नजर आती ही है लेकिन इसके लिए पूरा का पूरा प्रशासन भी उससे कहीं ज्यादा जिम्मेदार है। सबको पता है कि ऑल वेदर रोड का लगभग 90 फीसदी हिस्सा पर्वतीय भागों का है और आजकल अधिकाँश जगह हिल साइड के कटिंग का कार्य चल रह है। अब सरकार सेफ्टी ऑडिट प्रक्रिया के तहत अनिवार्य रूप से एक भू वैज्ञानिक और एक अधीक्षण अभियंता स्तर से निरीक्षण कराया जा रहा है पर काश ये सारा काम इससे पहले ही करा दिया जाता तो शायद आज वो 7 लोग जिन्दा होते।
ऑल वेदर रोड पर रुद्रप्रयाग से लेकर गौरीकुंड तक जो 76 किमी लम्बा सफ़र है उसपे 40 से भी ज्यादा स्लाइडिंग जों हैं और अगर कभी आप इस रास्ते सफ़र करेंगे की देहरादून-हरिद्वार से रुद्रप्रयाग तक का रास्ता तो बड़ी आसानी से कट जाता है लेकिन इसके बाद जिस तरह की परेशानियों से पिछले कुछ समय से लोगों को गुजरना पड़ रहा है उसे शब्दों में नहीं बताया जा सकता। 76 किमी के इस सफ़र में पहाड़ियों को जिस बेतरतीब तरीके से काटा जा रहा है उसमें अक्सर सड़कों पर बड़े-बड़े पत्थर गिरने का सिलसिला लगातार जारी है। सामरिक महत्व की इस महत्वाकांक्षी परियोजना में रोड सेफ्टी ऑडिट का प्रावधान न होने को लेकर अब तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं।