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इस देवालय में पूजा करने से मिलता है ‘शाप’, उत्तराखंड में मौजूद है एक ऐसा शिव मंदिर

देवों के देव महादेव भगवान शिव, सौम्य और रौद्र दोनों ही रूपों के लिए विख्यात हैं. भगवान शंकर के इस मंदिर का नाम ‘हथिया देवाल’ है. यह मंदिर एक अभिशप्त देवालय है. यह देवभूमि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के थल में छह किमी दूर बल्तिर गांव में स्थित है. इस मंदिर की खास बात यह है कि लोग यहां भगवान शिव के दर्शन करने तो आते हैं, लेकिन यहां भगवान पूजा नहीं की जाती. लोगों के यहां आने का कारण इस मंदिर की मंदिर की अनूठी स्थापत्य कला है.इस मंदिर को ‘हथिया देवाल’ नाम देने के पीछे का कारण बेहद रोमांचक है. यह मंदिर एक हाथ से बना हुआ है. माना जाता है कि पुराने समय में यहां राजा कत्यूरी का शासन था. उस काल के राजाओं को स्थापत्य कला से बेहद लगाव होता था. लोगों की मान्यता है कि एक कुशल कारीगर ने मंदिर का निर्माण किया था. इस मंदिर के बनने की खास बात यह थी कि उस कारीगर ने केवल एक हाथ से मंदिर बनाना शुरू किया और एक ही रात में पूरा मंदिर तैयार कर दिया था. यह मंदिर इतना पुराना है कि ग्रंथों, अभिलेखों में भी इस मंदिर का वर्णन मिलता है.

मान्यताओं के अनुसार इस गांव में एक मूर्तिकार रहता था जो पत्थरों को काटकर मूर्तियां बनाया करता था लेकिन एक बार किसी दुर्घटना के चलते वो अपना एक हाथ खो देता है. एक हाथ गंवाने के बाद भी वो मूर्तियां बनाने का काम जारी रखना चाहता था लेकिन गांववाले उसे अक्सर ताने दिया करते थे कि एक हाथ के सहारे वो क्या कर सकेगा. बार-बार गांव वालों के ताने सुनकर उसका मन एकदम खिन्न हो गया था, जिसके बाद उसने ये ठान लिया कि वो उस गांव में नहीं रहेगा, यह प्रण करके वो एक रात अपनी छेनी, हथौड़ी और दूसरे औजार लेकर गांव के दक्षिणी छोर की ओर निकल पड़ा. अगले दिन सुबह जब गांव का एक आदमी इस दिशा में गया तो उसने पाया कि रातभर में किसी ने चट्टान को काटकर एक देवालय का रुप दे दिया है. यह देखकर सबकी आंखे फटी की फटी रह गई और सारे गांववाले इकट्ठा होकर एक हाथ वाले उस कारीगर का इंतजार करने लगे. लेकिन वो वापस नहीं लौटा क्योंकि अपने प्रण के अनुसार वो इस गांव को छोड़कर जा चुका था. उसने एक रात में भव्य मंदिर तो तैयार कर दिया था लेकिन शिवलिंग का अरघा उत्तर दिशा में बनाने के बजाय दक्षिण दिशा में बना दिया था. यहां के लोगों का यह मानना है कि विपरित अरघा वाला यह शिवलिंग पूजन के योग्य नहीं है और इसे पूजने से से कोई अनहोनी हो सकती है इसलिए आज तक किसी ने भी इस शिवलिंग की पूजा नहीं की.