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उत्तराखंड की विरासत को सहेजता हुआ एक कलाकार, अपना हुनर पहचाना और पूरी दुनियां पर छा गया

टिहरी गढ़वाल के जाखणखाल के रहने वाले हैं दिनेश लाल जो आज 37 साल के हो चुके हैं, वो बताते हैं कि अपनी ग्रेजुएशन की पढाई पूरी करने के बाद वो दुबई में एक होटल में नौकरी करने चले गये थे। पर उनकी तबियत वहां हमेशा नासूर बनी रहती थी जिसके बाद वो साल 2009 में वापस भारत लौट आये थे और फिर अगले 3 साल तक उनकी तबियत ऐसे ही खराब रही जिसके बाद घर के आर्थिक हालात भी बहुत ही ज्यादा बुरे हो चुके थे और वो कर्ज के बोझ से दब चुके थे और उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था आखिर इन सब परेशानियों से बाहर कैसे निकला जाये।

एक दिन घर में खेल रहे उनके छोटे बच्चे ने उनसे रिमोट वाली गाडी की मांग कर दी, अब दिनेश को ये तो पता था कि उनके पास इतने पैंसे नहीं हैं कि वो बच्चे की इच्छा को पूरी कर सकें पर वो बच्चे का दिल भी नहीं दुखाना चाहते थे तो वो अपने पास ही रहने वाले बढ़ई के पास पहुँच गये और उससे बेकार हो चुकी लकड़ी ली और फिर उस लकड़ी को बच्चे की कार का रूप देने में जुट गये इसके बाद उसमें एक पुरानी बैट्री को फिट करके बच्चे को उसके खिलौना दे दिया। फिर क्या था उसके बाद बच्चे को उसका खिलौना मिल गया था और दिनेश को एक नया आईडिया उसके बाद शुरू में दिनेश की माली हालात बहुत ही बुरी थी तो वो बढ़ई से ऐसे ही बेकार लकड़ी लेते रहते थे और उससे बच्चे का खिलौना बनाते रहते थे।

धीरे-धीरे दिनेश जिस तरह से लकड़ी को तराशता था उसके पूरे गाँव में तारीफ होने लगी और लोगों ने उसे इसी काम को बड़े स्तर पर करने के लिए प्रेरति किया, इसके बाद दिनेश ने कुछ लकड़ियां और कुछ पैसे उधार लिये और अपने गांव के पास ही एक पुराना खंडहर बन चुका पहाड़ी घर देखा था जिसे देखकर उनके मन मे कुछ भाव उमड़े। और फिर ये कलाकार लकड़ी से बनने वाली तिबार के निर्माण में जुट गया और फिर उन्होंने एक पहाड़ी घर यानी तिबार बना दी जिसमें कई सारे कमरे हैं। ऊपर कमरों तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां हैं। कोई व्यक्ति वहां बैठा, कोई पहाड़ी वाद्य यंत्र बजा रहा है। नीचे दो गायें एक साथ बैठी हैं और वहां पशुओं को चारा ले जाती महिला दिखती है। कुछ पेड़-पौधों के लिए भी जगह है। ताकि हरियाली बनी रहे।

उसके बाद दिनेश की लकड़ी से बने हुए इस पहाड़ी घर को सब जगह से बहुत ही प्रशंसा मिलने लगी, यहाँ तक कि टिहरी जिले के जिलाधिकारी को भी स्मृति चिन्ह के रूप में यह भेंट किया गया| इसके बाद दिनेश लाल के पास लकड़ी से बनाने वाले छोटे-छोटे आर्डर आने लगे और वो लकड़ी से ऐसी ही कारीगरी तलाशने में जुटे रहे, अब धीरे-धीरे घर के आर्थिक हालत ठीक हो चुके हैं। जो प्रसिद्ध कारीगरी अब तक उन्होंने करी है उसमें  अधिकतर उत्तराखंड के ग्रामीण जीवन को दर्शाते हैं। जैसे मेहनतकश पहाड़ी महिला है, खेतों को जोतते हल-बैल हैं, घर के बाहर हुक्का पीते बुजुर्ग हैं, भगवान् कृष्ण हैं, मठ्ठा मथती महिला है, जानवरों के झुंड हैं, लकड़ी का दीपक है, लकड़ी के बर्तन, ढोल-दमाऊ बजाते गांववाले हैं आदि प्रमुख हैं। दिनेश लाल बताते हैं कि उनके पिता पत्थर तराशते थे और उनके पूर्वज पत्थर की मूर्तियां बनाते थे बस वही कला उनके अंदर भी मौजूद थी जिसे पहचाने में कुछ समय लगा और आज जिसके ज़रिये वो ज़िंदगी के मुश्किल हालात से बाहर निकल पाये हैं।


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