दुनियांभर के हिन्दुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है बद्रीनाथ, और अब यहाँ गायी जाने वाली आरती को लेकर एक नयी जानकारी सबके सामने आ गयी है। अगर बात अब तक की करैं तो यह माना जाता है कि यह आरती एक मुस्लिम भक्त बदरुद्दीन उर्फ नसरुद्दीन निवासी नंदप्रयाग, जिला चमोली के द्वारा लिखी गयी थी। लेकिन अब इस आरती को लेकर एक नया दावा किया जा रहा है और ये दावा किया है महेंद्र सिंह बर्तवाल ने, उन्होंने एक पांडुलिपि के प्रति उत्तराखंड के पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर को भेजी है। पर्यटन सचिव ने इस पर कहा कि सबसे पहले इस पांडुलिपि के डिजिटलाईजेशन किया जाएगा और फिर इसकी कार्बन डेटिंग कराकर ये कब लिखी गयी इसके बारे में जानकारी एकत्रित की जायेगी।
रुद्रप्रयाग जिले के सतेरा स्यूपुरी पट्टी तल्ला नागपुर के महेंद्र सिंह बर्तवाल ने दावा किया है कि ये जो पांडुलिपि है वो उनके दादा स्वर्गीय धन सिंह वर्त्वाल ने लिखी है। उन्होंने कहा कि उनके दादा जी द्वारा ये आरती साल 1881 में लिखी गयी थी, इस पाण्डुलिपि की मुख्य विशेषता ये है कि यह बदरीनाथ में गायी जाने वाली वर्तमान आरती का प्रथम पद ‘पवन मंद सुगन्ध शीतल’ इस आरती का पांचवा पद है और साथ ही वर्तमान आरती से 4 पद ज्यादा हैं यानी इस पांडुलिपि के प्रथम 5 पद वर्तमान आरती में नहीं हैं। इसके अलावा पांडुलिपि में गढ़वाली भाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है, जैसे कौतुक के स्थान पर कौथिग, पवन के स्थान पर पौन, वहीं सिद्ध मुनिजन के स्थान पर सकल मुनिजन अंकित है।
पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर ने इस पर अब कहा है कि रुद्रप्रयाग जिले के जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल जी को इस पांडुलिपि की मूल प्रति प्राप्त करने के निर्देश दिए गये हैं, और अब यदि रुद्रप्रयाग जिले के निवासी महेंद्र सिंह बर्तवाल का यह दावा सही पाया जाता है तो इतिहास के लिए भी यह बड़ी उपलब्धि होगी और साथ ही बद्रीनाथ धाम की असली आरती के लेखक कौन हैं इस पर भी असमंजस की स्थिति बनती दिख रही है।