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पेशावर कांड की 90 वीं बरसी: जिसके महानायक थे गढ़वाल राइफल के सैनिक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली

25 दिसम्बर को उत्तराखंड के महान सपूत वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली का जन्म हुआ था। इनका जन्म पौड़ी जिले के थलीसैण ब्लाक के मासी, रौणीसेरा गाँव में हुआ था। चन्द्र सिंह के पिता जी का नाम जलौथ सिंह भंडारी था, और वह एक अनपढ़ किसान थे। इसी वजह से चन्द्र सिंह को भी वो शिक्षित नहीं कर पाए पर चन्द्र सिंह ने अपनी मेहनत और लगन से ही पढ़ना लिखना सीख लिया था। बात 3 सितम्बर 1914 की है चन्द्र सिंह सेना में भर्ती होने लैंसडौन पहुंचे, और वो पहले ही प्रयास में सेना भर्ती भी हो गए थे। वीर चन्द्र सिंह ने मेसोपोटामिया और बग़दाद में हुई लड़ाई में भाग लिया और दोनों युद्ध में अंग्रेज सेना की और से लड़ते हुए इन्हें जीत प्राप्त हुई थी।

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और जब प्रथम विश्व युद्ध 1914 में शुरू हुआ था तब मित्र राष्ट्रों की और से लड़ते हुए भाग लिया। यूरोप और मध्य पूर्व क्षेत्र में हुई लड़ाई में हिस्सा लेते हुए 1930 में वीर चन्द्र गढ़वाली की बटालियन को पेशावर जाने का हुक्म मिला। इसी समय पेशावर में खान अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व में लाल कुर्ती आंदोलन जोरों पर था। अंग्रेजों ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए चंद्र सिंह के नेतृत्व में गढ़वाल रायफल्स को भेजा। वह 23 अप्रैल 1930 का एक दिन था। पेशावर के किस्सा खवानी बाजार में खान अब्दुल गफ्फार खान के लाल कुर्ती आंदोलनकारियों की एक सभा चल रही थी।

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कैप्टन रिकेट ने सभा पर गोली चलाने का हुक्म दिया लेकिन चंद्रसिंह ने रिकेट को ये कहते हुए कि हम निहत्थे लोगों पर गोली नहीं चलाते, सीज फायर का आदेश दे दिया। इस घटना से अंग्रेज अधिकारियों में हड़कंप मच गया। चंद्रसिंह की पूरी पल्टन नजरबंद कर ली गई। इन पर राजद्रोह का मुकदमा चला। गढ़वाली सैनिकों की ओर से मुकुंदीलाल ने मुकदमें की पैरवी की पैरवी के चलते चंद्रसिंह को मृत्युदंड की जगह उम्र कैद की सजा दी गई। अंग्रेजी हुकूमत ने चंद्रसिंह की सारी संपत्ति जब्त कर ली। पेशावर कांड ने चंद्र सिंह और गढ़वाल बटालियन को ऊंचा दर्जा दिलाया। चारों तरफ चंद्रसिंह की चर्चा होने लगी। इसके बाद इन्हें चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम से जाना जाने लगा।

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अंग्रेजी हुकूमत के इस आदेश को न मानने के कारण पेशावर में ही वीर चन्द्र सिंह को नजरबन्द कर दिया गया और उनपे मुकदमा चलाया गया। 15 साल तक वीर चन्द्र सिंह को जेल में रहना पड़ा, और उसके बाद जब वो जेल से छूट कर बाहर आये तो उन्होंने महात्मा गांधी के साथ मिलकर भारत की आजादी के लिए आन्दोलन छेड दिया था। भारत की आजादी के पश्चात भी वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने उत्तराखंड और गढ़वाल में व्याप्त अनेक कुरीतियों से जंग लड़ी। पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग के लिए भी वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली आजीवन लड़ते रहे और उनका ये भी मानना था कि पहाड़ी राज्य की राजधानी भी पहाड़ में ही होनी चाहिए। 1 अक्टूबर 1979 को वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली का लम्बी बिमारी के बाद देहान्त हो गया। 1994 में भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया गया। और आज कई सड़कों और योजनाओं के नाम भी इनके नाम पर रखे गये हैं।


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