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पहाड़ी टोपी, गढ़वाली नथ वाले चैलेंज से बाहर निकलिए..पहाड़ के असली चैलेंज के आगे हार गई पहाड़ की बेटी

सोशल मीडिया में पिछले कई दिनों से तरह-तरह के ‘चैलेंज’ चल रहे हैं। इसका हम कतई विरोध नहीं कर रहे। बेशक आप ‘चैलेंज’ लीजिए। हमारी आपसे बस एक शिकायत है। एक ‘चैलेंज’ आप व्यवस्था की खामियों को लेकर क्यों नहीं चलाते ? तस्वीर में आप राखी नाम की जिस विवाहिता को देख रहे हैं, वह अब इस दुनिया में नहीं है। हमारे सिस्टम की खामी और कुप्रबंधन से उसकी असामयिक मृत्यु हो गई है। पहाड़ में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में राखी जैसी न जाने कितनी ही महिलाओं ने दम तोड़ दिया है। यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। हमारे सिस्टम को इससे रत्ती भर भी फ़र्क नहीं पड़ता। फ़र्क पड़ेगा भी कैसे, हम लोग मुर्दा हो गए हैं। हमारी सोच संकीर्ण हो गई है। हमें अपने सिस्टम में गड़बड़ी नजर नहीं आती। सवाल पूछने वाले को ही कटघरे में खड़ा करने की आदत सी हो गई है। ऐसे में व्यवस्थाएं कैसे बदलेंगी ? यह बात हमें अच्छे से समझनी होगी कि जब तक हम सोए रहेंगे, इसी तरह की घटनाएं होती रहेंगी। कल हमारे साथ भी ऐसा हो सकता है। आगे पढ़ें:

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दरअसल, टिहरी जनपद की नैलचामी पट्टी के ठेला गांव निवासी 23 वर्षीय राखी देवी को प्रसव पीड़ा होने पर 11 दिसंबर को घनसाली के पिलकी अस्पताल में भर्ती किया गया। उसकी गंभीर स्थिति के बाबजूद उसे हायर सेंटर के लिए रेफर नहीं किया गया। डॉक्टरों ने उसे सामान्य बताया। 15 दिसंबर को महिला ने बच्चे को जन्म दिया, जिसके बाद उसकी हालत बिगड़ने लगी। दोपहर बाद आनन-फानन में महिला को श्रीनगर बेस चिकित्सालय के लिए रेफर किया गया। जहां अस्पताल पहुँचने से पहले महिला ने दम तोड़ दिया। इस महिला का मायका रुद्रप्रयाग जनपद के जाखाल (डोभा) गांव में है। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की उम्मीद थी। पिछले बीस वर्षों में पहाड़ों में एक अदद अस्पताल ऐसा नहीं बना, जहां लोगों को सुविधाएं मिल सके। अस्पताल सिर्फ रेफर सेंटर बनकर रह गए हैं। आज आवाज़ नहीं उठाई तो ऐसे ही परिणाम भुगतने के किये हमें तैयार रहना चाहिए।

मोहित डिमरी की फेसबुक वॉल से साभार

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