कोरोना महामारी के चलते पूरे देश मै लॉकडाउन होने के कारण सब ठप है। महानगरों में रोजगार के लिए एक जगह से दूसरी जगह गए मजदूर किसी भी तरह से घर वापसी जाना चाहते हैं, क्योंकि लॉकडाउन मै काम न होने की वजह से उनकी रोजी रोटी छीन गयी है। वह अब किसी भी हाल में अपने गांव लौटना चाहते हैं, ताकि उन्हें घर मै कम से कम दो वक्त का खाना नसीब हो सके। यही उम्मीद ले के तेलंगाना के पेरूर गांव से अपने गांव आदेड़ (छत्तीसगढ़) के लिए 12 साल की एक बच्ची पैदल ही निकल पड़ी। तीन दिन मै करीब 100 किमी पैदल चलने के बाद भी वह अपनो से ना मील सकी। अपने घर से कुछ 14 किमी पहले ही उसने दुनिया को अलविदा कह दिया।।
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बीजापुर के आदेड़ गांव की रहने वाली जमलो दो महीने पहले ही रोजगार की तलाश मै तेलंगाना के पेरूर गांव गई थी। वहां उसे मिर्ची तोड़ने का काम मिल गया, कोरोना के कारण लॉकडाउन होने की वजह से काम बंद हो गया। कुछ दिनों तक तो उसने किसी तरह अपने खाने-पीने का इंतजाम किया, लेकिन लॉकडाउन बढ़ने के कारण जब खाने का संकट बढने लगा, तो 16 अप्रैल को जमलो और गांव के 11 अन्य साथियों के साथ तेलंगाना से वापस बीजापुर के लिए पैदल ही निकल पड़ी। रास्ते में उसकी तबीयत अचानक खराब हुई, जंगल का रास्ता होने के कारण उसे किसी तरह का इलाज नहीं मिल सका। 18 अप्रैल को घर से कुछ 14 किमी पहले मोदकपाल इलाके के भंडारपाल गांव के पास उसने दम तोड़ दिया। वही उसके साथियो ने बताया कि बच्ची ने पेट में दर्द होने की बात कही थी। वह 12 साल की बच्ची परिवार की इकलौती संतान थी। बच्ची के पिता आंदोराम ने कहा कि वह अपने बच्ची के लौटने का इंतजार कर रहे थे पर आयी उसकी मौत की खबर।
जैसे ही बच्ची की मौत की खबर प्रशासन को लगी प्रशासन की टीम गांव पहुंची। और अन्य मजदूरो हो क्वारंटीन किया गया है। उन्हीं लोगों में से किसी ने गांव पहुंचकर इकलौती बेटी की मौत की खबर दी तो पिता आंदोराम मड़कम और मां सुकमती जिला अस्पताल पहुंचे। सोमवार को बीजापुर में पोस्टमार्टम के बाद जमलो का शव माता-पिता को सौंपा दिया गया।