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हिंदी जेटली होगी तो बोरिंग होगी, हिंदी अडवाणी होगी तो शतक से चूक जायेगी, हिंदी को मोदी होना पड़ेगा

बचपन का एक कार्टून याद आता है जब किसी समारोह में आज ही के दिन यानी 14 सितम्बर को हिंदी दिवस आयोजन किया जा रहा था और जब मंच संभालने वाले महोदय ने कहा की आज हम सब यहाँ पर ‘हिंदी डे’ मनाने के लिए एकत्रित हुए हैं और हम आप सभी का ‘वेलकम’ करते हैं, तो ये वही समय है जब हिंदी अपनी पहचान इस तरह से खोती चली जा रही है। इस कहानी का दूसरा अच्छा पक्ष यह भी है कि आज हिंदी चीनी भाषा के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है, लगभग 20 देशों में हिन्दी भाषा का इस्तेमाल किया जाता है, 50 करोड़ से ज्यादा लोग हिन्दी की समझ रखते हैं और बोलते हैं।

भारत को जब साल 1947 में अंग्रेजों से आजादी मिली थी तो उसके लगभग ठीक 2 साल और 1 महीने बाद 14 सितम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा ने हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया था और तभी से हर साल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जा रहा है। यही वो दिन होता है जब पूरे देश भर में हिंदी के प्रचार प्रसार की शपथ ली जाती है और लोगों को राष्ट्रभाषा में ही काम करने के लिए प्रेरित भी किया जाता है। हिंदी दिवस के अलावा शायद ही कोई दूसरी ऐसी भाषा है जिसके लिए कोई दिवस मनाया जाता हो। जहाँ एक और हिंदी भाषा हम सभी को आगे बढती हुई नजर आती है वहीँ इसका दूसरा पक्ष डरा देने वाला भी है।

आज भारत में अगर आपको अंग्रेजी नहीं आती तो आपको हीन दृष्टि से देखा जाता है, अंग्रेजी में बात करने का एक चलन पूरे देश भर में बढ़ता जा रहा है और अगर आपको ये भाषा नहीं आती तो भारत में बहुत सारे ऐसे संस्थान हैं जहाँ आपको नौकरी भी नहीं मिल सकती है। इस समय हमें जरुरत है इन सब बातों से ऊपर उठने की ताकि हिंदी का अधिक से अधिक विकास हो सके। जरुरत है पूरे भारत के कार्यालयों, स्कूलों, संस्थानों आदि में बेहद उत्साह से इसी तरीके से ये हिंदी दिवस मनाया जाता रहे। इस अवसर का जश्न मनाने के पीछे सरकार का प्राथमिक उद्देश्य हिंदी भाषा की संस्कृति को बढ़ावा देना और फैलाना होना चाहिए। आप भी इस तरह के किसी उत्सव का एक हिस्सा बनिए और जहाँ आपको स्पीच/भाषण देने की आवश्यकता पड़े वो दीजिये।


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