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पहाड़ में महिलाओं ने 13 गांवों की बुझाई प्यास, और शुरू की स्वरोजगार की शानदार पहल

वो कहते हैं न कि अगर आपमें कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो वो काम आप जरुर पूरा कर सकते हैं। इसी बात की मिसाल पहाड़ की महिलाओं ने एक बार फिर दी है। हम यहाँ बात कर रहे हैं रुद्रप्रयाग जिले में जखोली ब्लॉक की लुठियाग समेत 13 ग्रामसभाओं की महिलाओं की जिन्होंने वर्षाजल का संरक्षण कर प्राकृतिक जल स्नोतों को पुनर्जीवित करने की अनूठी पहल की है। और इसके साथ ही उन्होंने स्वरोजगार की पहल का भी शानदार नमूना पेश किया है। इस प्रयास की प्रसंशा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मन की बात कार्यक्रम में कर चुके हैं।

बात है साल 2014 की लुठियाग ग्रामसभा में 205 परिवार रहते थे, लेकिन गांव मे एक ही प्राकृतिक जल स्नोत बचा था, जो बरसात के चार महीनों को छोड़ शेष समय सूखा रहता था। ऐसे में ग्रामीणों को ढाई से तीन किमी दूर से जरूरत का पानी जुटाना पड़ता था। जिससे 101 परिवार पलायन कर गए। यह देख वर्ष 2014 में ग्रामीणों ने राज राजेश्वरी ग्राम कृषक समिति का गठन कर गांव के हर परिवार के लिए पानी जुटाने का संकल्प लिया। इसके तहत पांच जून 2014 को विश्व पर्यावरण दिवस पर 104 परिवारों की महिलाओं के साथ अन्य ग्रामीणों ने पेयजल स्नोत से डेढ़ किमी ऊपर जंगल में एक झील (खाल) बनाने का कार्य शुरू किया।

40 मीटर लंबी और 18 मीटर चौड़ी झील बनकर तैयार हो गई। धीरे-धीरे झील में बारिश का पानी जमा होने लगा और वर्ष 2015 में इसमें करीब पांच लाख लीटर पानी जमा होने से गांव में पेयजल स्नोत रीचार्ज होने शुरू हो गए। वर्ष 2016 में झील में पानी की मात्र आठ लाख लीटर हो गई, जो वर्तमान में 11 लाख लीटर है। इसके बाद ग्रामीणों ने रिलायंस फाउंडेशन की मदद से स्नोत के समीप 22 हजार व 50 हजार लीटर क्षमता के दो स्टोरेज टैंकों का निर्माण कराया। जिनसे सभी घरों को पर्याप्त पानी मिल रहा है।

आज यही स्थिति इस क्षेत्र की अन्य 12 ग्रामसभाओं की भी थी। पेयजल किल्लत से जूझ रही इन ग्रामसभाओं में भी महिलाओं ने श्रमदान कर गांवों के ठीक ऊपर खाल का निर्माण किया। और जिसके फलस्वरूप आज इन गांवों में कहीं भी पानी की किल्लत नहीं है। आज इन गांवों में उगने वाली जैविक सब्जियों की उत्तराखंड के अन्य जिलों में भी डिमांड है। इस प्रयास की प्रसंशा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मन की बात कार्यक्रम में कर चुके हैं। मोदी ने कहा कि पहाड़ों में जल संरक्षण की दिशा में महिलाओं का यह प्रयास अनुकरणीय है।


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