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सबसे बड़ा सवाल: बदरुद्दीन या बर्थवाल आखिर किसने लिखी बद्रीनाथ धाम की 120 साल पुरानी आरती?

भगवान विष्णु के सबसे पवित्र धाम बद्रीनाथ में जब शाम की आरती होती है तो उस वक्त का नजारा हर किसी को अपनी और खींच देता है। पर पिछले दो सालों से वहां आरती के मंत्रों के साथ एक बड़ा सवाल भी गूंज रहा है और वह ये कि ‘पवन मंद सुगंध शीतल’ आरती असल में लिखी किसने है। इस आरती को 120 से भी ज्यादा साल हो चुके हैं लेकिन हाल में उत्तराखंड सरकार ने इसके नये रचयिता का ऐलान करके एक नयी बहस का जन्म छेड़ दिया है।

प्रदेश सरकार का मानना है कि यह आरती रुद्रप्रयाग जिले के लेखक धान सिंह बर्थवाल ने लिखी थे जबकि पहले से चली आ रही मान्यता के अनुसार चमोली में नंदप्रयाग के एक पोस्टमास्टर फखरुद्दीन सिद्दीकी ने 1860 के दशक में यह आरती लिखी थी। फखरुद्दीन सिद्दीकी भगवान बदरी के भक्त थे और लोग बाद में उन्हें इसी कारण ‘बदरुद्दीन’ बुलाने लगे थे।

धान सिंह के परपोते महेंद्र सिंह बर्थवाल हाल ही में प्रशासन के पास आरती की हस्तलिपि के साथ पहुंचे। कार्बन डेटिंग टेस्ट के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ऐलान किया कि यह हस्तलिपि 1881 की है, जब यह आरती चलन में आई थी। बदरुद्दीन का परिवार ऐसा कोई सबूत दे नहीं सका, इसलिए बर्थवाल परिवार के दावों को सच मान लिया गया है। वहीँ दूसरी ओर 1889 में प्रकाशित एक किताब में यह आरती है और बदरुद्दीन के रिश्तेदार को इसका संरक्षक बताया गया है। यह किताब अल्मोड़ा के एक संग्रहालय में रखी है।

अब विशेषज्ञों ने लेखक का पता करने के लिए राज्य सरकार के किताब को नजरअंदाज करने और सिर्फ कार्बन डेटिंग पर विश्वास करने पर सवाल खड़े किये हैं। आईआईटी रुड़की के असोसिएट प्रफेसर एएस मौर्या ने कहा है कि कार्बन डेटिंग से सटीक साल का पता नहीं लगाया जा सकता है। उनका कहना है कि असली उम्र डेटिंग टेस्ट में मिले नतीजों से 80 साल आगे पीछे हो सकती है। यह साफतौर पर नहीं कहा जा सकता कि बर्थवाल हस्तलिपि 1881 में ही लिखी गई थी। दूसरी ओर, कार्बन डेटिंग करने वाले उत्तराखंड स्पेस ऐप्लिकेशन सेंटर के निदेशक एमपीएस बिश्ट का दावा है कि टेस्ट के नतीजे एकदम सटीक हैं।

बद्रीनाथ के पुजारी पंडित विनय कृष्णा रावत का कहना है कि उनके दादा बदरुद्दीन को जानते थे। उन्होंने दावा किया है कि बदरुद्दीन ने उनके दादा को बताया था कि आरती उन्होंने लिखी है। पंडित कृष्णा बताते हैं, ‘मेरे दादा अकसर बताते थे कि कैसे रुद्राक्ष पहनने वाला मुस्लिम आदमी बदरीनाथ मंदिर की सीढ़ियों पर भक्ति में डूबकर बैठा देखा जा सकता था। बदरुद्दीन के वंशजों को इस बात का दुख है कि परिवार की विरासत को उनसे छीना जा रहा है। उनके परपोते अयाजुद्दीन ने कहा, ‘वह भगवान बदरीनाथ के भक्त थे, इसलिए परिवार ने उनके विश्वास को जीवित रखा है।’ हर साल होने वाली रामलीला में अयाज लंका के राजा रावण के बेटे मेघनाद की भूमिका निभाते हैं।

 


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