Home उत्तराखंड देवभूमि की पीड़ा : 18 साल में 3000 गांव उजाड़, पलायन नहीं...

देवभूमि की पीड़ा : 18 साल में 3000 गांव उजाड़, पलायन नहीं श्राप है ये !

पहाड़ी इलाकों के विकास और यहां से तेजी से हो रहे पलायन पर रोक लगाने का सपना लेकर उत्तराखंड आंदोलन चलाया गया। आखिरकार उत्तराखंड को एक अलग राज्य के रूप में पहचान भी मिल गई लेकिन ना तो पहाड़ी इलाकों का सही से विकास हो पाया और ना ही पलायन पर रोक लगी। उल्टा राज्य बनने के बाद पलायन और तेज हो गया। 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश के लगभग ढाई लाख घरों में ताले लटके हुए हैं। पिछले 17 सालों में तीन हजार से अधिक गांव खाली हो चुके हैं। एक लाख हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि बंजर हो चुकी है। यदि हालात नहीं बदले, तो पूरा का पूरा पहाड़ खाली हो जाएगा। इस स्थिति से बचने के लिए पलायन रोकने पर गंभीरता से विचार हो रहा है।

पलायन की मार से पहाड़ तो कराह ही रहा, मैदानी क्षेत्र भी इससे अछूते नहीं हैं। दोनों ही जगह पलायन के अलग-अलग कारण हैं। दरअसल, इसके लिए मूलभूत सुविधाओं के साथ ही शिक्षा व रोजगार का अभाव, विकास में स्थानीय जन की अनदेखी, विभागीय उदासीनता जैसे अनेक कारण हैं और सबसे बड़ी वजह है सरकारों की जनाकांक्षाओं से बढ़ रही दूरी। वोट की फसल उगाते हुए राजनेताओं की जुबां पर भले ही पलायन का दर्द छलकता हो, लेकिन सत्तारूढ़ होते ही यह विषय विमर्श से आगे नहीं बढ़ पाया। सच तो यह है कि खोट नीति में नहीं, बल्कि नीयत में रहा है। अब वक्त आ गया है कि ईमानदारी के साथ इस दिशा में काम किया जाए। स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप योजनाओं के क्रियान्वयन के साथ ही विकास में गांव व जन की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है। गांवों में शिक्षा व रोजगार की दिशा में प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए। जाहिर है मूलभूत सुविधाओं को दुरुस्त किए बिना बदलाव की बात करना बेमानी है।


LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here