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उत्तराखंड समान नागरिक संहिता: लागू होते ही जानिये किस तरह बदल जाएगा जीवन… समझिये इसका प्रभाव

उत्तराखंड का समान नागरिक संहिता (UCC) का मसौदा सामने आया है. कवर की एक्सक्लूसिव तस्वीरों में इस संहिता का आशय स्पष्ट हो रहा है. मसौदा रिपोर्ट के मुख पृष्ठ पर न्याय की देवी की तस्वीर है. बड़ी बात यह है कि न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी नहीं बंधी है. इसका संदेश यह है कि कानून अब सबको समान नजरों से देखेगा. उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का मसौदा तैयार करने के लिए एक समिति गठित की थी. इस समिति ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को मसौदा रिपोर्ट सौंप दी. यह रिपोर्ट चार खंडों में दी गई है. इसका शीर्षक ‘समानता द्वारा समरसता’ है. इसस रिपोर्ट के कवर पेज पर ‘न्याय की देवी’ की आंखों पर पट्टी नहीं बंधी है. इसका तात्पर्य है कि कानून अब सबको समान नजरों से देखेगा. इसीलिए रिपोर्ट का शीर्षक ‘समानता से समरसता’ रखा गया है.

  1. सभी धर्मों में विवाह के लिए 18 वर्ष हो लड़की की उम्र

सूत्रों के अनुसार समिति ने सभी धर्मों में विवाह के लिए लड़कियों की न्यूनतम आयु सीमा 18 वर्ष करने की संस्तुति की है। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि विवाह से पहले वे अच्छी तरह शिक्षित हो सकें। बाल विवाह को अपराध की श्रेणी में रखते हुए इसमें सजा व जुर्माना दोनों रखने की पैरवी की गई है।

  1. विवाह का पंजीकरण नहीं तो सरकारी सुविधाओं का लाभ भी नहीं

समिति ने विवाह के लिए पंजीकरण को अनिवार्य करने की सिफारिश की है। बिना पंजीकरण के दंपति को सरकारी सुविधाओं के लाभ से वंचित रखने पर जोर दिया गया है। ग्राम स्तर पर भी विवाह के पंजीकरण की अनुमति देने की व्यवस्था करने की संस्तुति की गई है।

  1. पति-पत्नी को संबंध विच्छेद में समान अधिकार

पति-पत्नी को तलाक अथवा संबंध विच्छेद में समान अधिकार उपलब्ध होंगे। यानी तलाक का जो आधार पति के लिए लागू होगा, वही पत्नी के लिए भी लागू होगा। कुछ धर्मों में पति व पत्नी में तलाक के अलग-अलग आधार तय हैं। समिति ने बहुविवाह पर भी रोक लगाने की संस्तुति की है। एक पत्नी के जीवित रहते पति का दूसरा विवाह अपराध की श्रेणी में आएगा।

साथ ही तलाक को कानूनीजामा पहनाने पर जोर दिया गया है। तलाक या संबंध विच्छेद कानून के अनुसार ही होगा, जो सभी धर्मों के व्यक्तियों पर लागू होगा। इसमें भी दोनों पक्षों को एक बार फिर विचार करने को छह माह का समय दिया जाएगा। अभी कुछ धर्मों में विवाह विच्छेद के समय फिर से विचार करने का प्रविधान नहीं है, तो वहीं कुछ धर्मों में यह अवधि छह माह से दो वर्ष तक है।

  1. लिव इन रिलेशनशिप का पंजीकरण अनिवार्य

समिति द्वारा की गई संस्तुति में लिवइन रिलेशनशिप से पहले पंजीकरण करना अनिवार्य किया गया है। यह सक्षम अधिकारी के समक्ष किया जाएगा। ऐसा न करने पर सजा व आर्थिक दंड का प्रविधान है। लिवइन के दौरान कोई संतान पैदा होती है तो उसे माता-पिता का नाम देना होगा और सभी हितों का संरक्षण करना होगा।

अन्य प्रमुख संस्तुतियां

  1. उत्तराधिकार में लड़कियों को समान अधिकार। अभी कुछ धर्मों में लड़कों का हिस्सा अधिक है।
  2. नौकरी करने वाले बेटे की मृत्यु पर पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में वृद्ध माता-पिता के भरण पोषण की जिम्मेदारी।
  3. पत्नी अगर पुनर्विवाह करती है तो पति की मौत पर मिलने वाले मुआवजे में माता-पिता का भी हिस्सा होगा।
  4. पत्नी की मृत्यु होने पर यदि उसके माता पिता का कोई सहारा न हो तो उनके भरण पोषण का दायित्व पति पर रहेगा।
  5. सभी धर्मों की महिलाएं ले सकेंगी बच्चों को गोद। अभी कुछ धर्मों में है मनाही।
  6. अनाथ बच्चों के अभिभावक बनने की प्रक्रिया होगी सरल।
  7. पति-पत्नी के झगड़े में बच्चों की उनके दादा-दादी अथवा नाना-नानी को सौंपी जा सकती है कस्टडी।

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