रोजी-रोटी और सुनहरे भविष्य के सपने लिए उत्तराखण्ड के लाखों लोगों ने देश-विदेश में पलायन किया परंतु लॉकडाउन के इस दौर ने प्रवासियों के सपने को तहस-नहस कर दिया। पहाड़ में साइकिल का चलन खासा कम है, मगर इसी पहाड़ में 30 साल के एक युवक ने साइकिल से आगरा से चंपावत तक का सफर पूरा कर डाला जोकि दुरी लगभग 375 किलोमीटर के आस पास है। लॉकडाउन में घर में रहने वाली पत्नी व दिव्यांग मां की हालत को देखते हुए उन्होंने किसी भी कीमत पर घर पहुंचने की ठानी। तमाम बाधाओं के बीच चार दिन में इस सफर को पूरा किया। इस दौरान तीसरे दिन शनिवार को उन्हें रोटी नसीब हुई।
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बाजरीकोट के सुनील जोशी गोवा में ड्राइविंग करते थे। कोरोना वायरस की वजह से कामबंदी की आहट के बीच वे 22 मार्च से शुरू हुए लॉकडाउन से एक दिन पूर्व गोवा से कर्नाटक के बेलगांव को निकल गए। 23 मार्च को बेलगांव से एक ट्रक से 1995 किमी दूर आगरा पहुंचे। इस सफर के लिए सुनील को तीन हजार रुपये किराया देना पड़ा। 25 मार्च से वह यहां अपनी बहन के किराये के घर में रहा। लगातर लॉकडाउन बढ़ने से उनकी बैचेनी बढ़ने लगी, तो उन्होंने तीन हजार रुपये की पुरानी साइकिल व हवा भरने वाला पंप खरीदा। उसके बाद 13 मई को आगरा से पैडल मारते चंपावत का सफर तय किया। बदायूं के एक मंदिर में बहन के घर से लाए खाने को खाकर 13 मई की रात काटी। 14 मई को ऊधमसिंह नगर जिले के पास और बीती रात बस्टिया में भूखे रहकर कटी।
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सुनील कहते हैं कि रास्ते में कहीं से कोई मदद नहीं मिली। पानी व बिस्कुट ही इस दौरान आसरा बने। एक जगह रास्ता भटके, तो पीलीभीत के पास साइकिल का टायर फटा और सात किमी तक साइकिल घसीटकर चलना पड़ा। एटा में पुलिस ने रोका, लेकिन स्क्रीनिंग व आधार कार्ड को देखने के बाद आगे बढ़ने दिया। शनिवार को बस्टिया से 16 किमी दूर सूखीढांग पहुंचे, तो सामाजिक कार्यकर्ता एनएस कार्की की मदद से आपदा प्रबंधन विभाग ने एक जीप में बिठाकर चंपावत पहुंचाया। चंपावत पहुंचे सुनील कहते हैं कि अब वे फिर से खेत से रोजी कमाने का प्रयास करेंगे।