उत्तराखंड इतिहास की सबसे बड़ी सुपरहिट फिल्म। जब से उत्तराखंड में फिल्में बननी शुरू हुईं, तब से लेकर अाज तक कोई भी दूसरी फिल्म घरजवैं का मुकाबला नहीं कर पाई। आगे हम आपको बता रहे हैं इस फिल्म के कुछ अनसुने किस्से और इनके कलाकारों के बारे में कि आजकल वो क्या कर रहे हैं।
कैसे बनी उत्तराखंड की सबसे बड़ी सुपरहिट
घरजवैं फिल्म को उत्तराखंड की शोले भी कहा जाता है। जिस तरह हिंदी फिल्म शोले कई सालों तक थियेटर में चलती रही। उसी तरह घरजवैं फिल्म भी दिल्ली के संगम सिनेमा हॉल में लगातार २९ हफ्ते तक चली थी। दावा ये भी किया जाता है कि घरजवैं उत्तराखंड की एकमात्र फिल्म है, जो 35MM में बनी है। आज किसी उत्तराखंडी फिल्म के बारे में ऐसा सोच भी पाना मुश्किल लगता है।
उत्तराखंड की पहली फिल्म १९८१ में आई। फिल्म का नाम था- जग्वाल। मौजूद रिकॉर्ड के मुताबिक १९८१ से २००९ तक उत्तराखंड में गढ़वाली में ५८ और कुमाऊंनी में ५ फिल्में बनी हैं। मेघा आ कुमाऊं भाषा में आई पहली फिल्म थी। ये सभी फिल्में एक तरफ और घरजवैं की सफलता एक तरफ रही है।
कहां हैं कलाकार?
अब बात करते हैं फिल्म के कुछ मुख्य कलाकारों की और मौजूदा समय में वो क्या कर रहे हैं। शुरुआत करते हैं फिल्म के मुख्य कलाकार हीरो बलराज नेगी से। बलराज नेगी फिल्म में न सिर्फ हीरो थे, बल्कि प्रोडक्शन की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर थी। बलराज नेगी आज भी उत्तराखंडी सिनेमा जगत से जुड़े हुए हैं। बलराज नेगी देहरादून में रहते हैं। कुछ समय पहले वह ‘सुबेरो घाम’ फिल्म में एक फौजी के तौर पर नजर आए। घरजवैं के बाद उन्होंने ब्वारी हो त् यनि, जिया की लाडी समेत कुछ एलबमों में भी काम किया।
शांति चतुर्वेदी
घरजवैं फिल्म की लीड एक्ट्रेस पहले शांति चतुर्वेदी नहीं थीं। लेकिन एक घटना की वजह से फिल्म में उनकी एंट्री हुई। शांति चतुर्वेदी एक अभिनेत्री हैं। घरजवैं फिल्म करने से पहले वह राजस्थानी और हरियाणवी फिल्मों में काम करती थीं। शांति चतुर्वेदी मौजूदा समय में मुंबई में रहती हैं। आज भी वह नृत्य सिखाने और अभिनय के क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं।
उर्मी नेगी
फिल्म में शांति चतुर्वेदी की मां का किरदार निभाने वाली महिला हैं उर्मी नेगी। उर्मी नेगी वर्तमान समय में मुंबई में रहती हैं। हाल ही में उन्होंने अपने प्रोडक्शन हाउस स्नोवी माउंटेन प्रोडक्शन हाउस के जरिये सुबेरो घाम फिल्म बनाई है। इसमें बलराज नेगी और उर्मी, दोनों ही मुख्य भूमिका में हैं। इन तीनों कलाकारों के अलावा इस फिल्म के निर्माता विश्वेसर दत्त नौटियाल का निधन हो चुका है। वह भी मुंबई में रहते थे।
…तो बंद हो जाती फिल्म
घऱजवैं फिल्म बननी शुरू हो चुकी थी। फिल्म का मुहुर्त शूट मुंबई के फिल्मीस्तान स्टूडियो में शूट किया गया। इस फिल्म में मुख्य अभिनेत्री के तौर पर शांति चतुर्वेदी का नाम नहीं था। इस फिल्म में पहले भारती नाम की एक लड़की हिराइन का किरदार निभा रही थी।… इसी लड़की की वजह से ये फिल्म बननी बंद होने के कगार पर आ गई थी।
शांति चतुर्वेदी नहीं थी पहले हिरोइन
इंटरव्यू में बलराज नेगी ने बताया कि रुमा-झुमा गाने की शूटिंग फिल्मीस्तान स्टूडियो मे होनी थी। भारती-बलराज समेत अन्य कलाकार यहां पहुंच चुके थे। फिल्म की हिरोइन भारती को पहाड़ी लिबास दिया गया। लेकिन हिरोइन की मां को ये लिबास पसंद नहीं आया। उसने कपड़ों को बाहर हिरोइन के कमरे के बाहर फेंक दिया। वह कहने लगी कि उसकी बेटी हिरोइन है और वह ऐसे कपड़े नहीं पहनेगी। इस पर फिल्म के निर्माता नौटियाल जी नाराज हो गए। उन्होंने पैकअप करवा दिया और उस हिरोइन को फिल्म से निकाल दिया।
लगा कि बंद हो गई फिल्म
बलदेव बताते हैं कि कुछ पल के लिए हमें लगा कि फिल्म अब नहीं बन पाएगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नौटियाल जी ने शांति चतुर्वेदी का पता लगाया और महज इस घटना के एक घंटे के भीतर शांति चतुर्वेदी को फिल्म में लिया गया। शांति को कार में ही रुमा-झुमा गीत के बोल याद करवाए गए और फिल्मीस्तान स्टूडियो पहुंचते ही शूट शुरू कर दिया गया। इस तरह शांति चतुर्वेदी फिल्म का हिस्सा बनीं।
कितने में बनी ये फिल्म?
इस फिल्म को उत्तराखंड की सबसे सफल फिल्म ही नहीं, बल्कि सबसे महंगी फिल्म का खिताब भी दिया जाता है। इस फिल्म की कुल लागत 35 लाख आई थी। जब ये फिल्म बनी थी, उस दौरान ये उत्तराखंड की सबसे महंगी फिल्म थी।
जंगल के सीन उत्तराखंड के नहीं
फिल्म में आपको जो मचान और जंगल के ज्यादातर सीन दिखाई देते हैं, वो उत्तराखंड में नहीं फिल्माए गए हैं। ये सारे सीन मुंबई में स्टूडियो में फिल्माए गए हैं।
गीतों का जादू सिर चढ़कर बोला
शांति चतुर्वेदी ने एक इंटरव्यू में बताया कि जब इस फिल्म की शूटिंग उत्तराखंड में शुरू हुई।… और जब भी गाने की शूटिंग होती थी, तो कलाकारों से पहले शूटिंग देखने आए लोग गाना गाना शुरू कर देते थे। नरेंद्र सिंह नेगी जी ने इस फिल्म के सारे गीत लिखे थे।
आज अगर कोई फिल्म घरजवैं की सफलता को नहीं बुना पा रही है, तो उसके पीछे उत्तराखंड फिल्म इंडस्ट्री का न बन पाना अहम वजह है। और इस इंडस्ट्री के बन न पाने के लिए उत्तराखंड की सरकारों को दोष दिया जा सकता है। जो आज भी इस तरफ कोई काम नहीं कर रही है।