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हरिद्वार का वह घाट जहां भगवान राम ने किया था अपने पिता का पिंडदान, यहां तर्पण से पितरों को मिलता है मोक्ष

उत्तराखंड की धर्म नगरी हरिद्वार विश्व में एक तीर्थ स्थल के नाम से विख्यात है. हरिद्वार को कुंभ नगरी के नाम से भी जाना जाता है. प्राचीन काल में देवताओं और असुरों के मध्य हुए समुद्र मंथन के बाद अमृत कलश निकला था, जिसके बाद अमृत के लिए असुरों और देवताओं में युद्ध हुआ था. इस दौरान अमृत कलश को लेकर जाते वक्त अमृत की कुछ बूंदें धरती पर चार जगह हरिद्वार, इलाहाबाद, नासिक और उज्जैन में छलक कर गिरी थी. हरिद्वार में हर की पौड़ी पर अमृत की बूंदें गिराने के कारण यहां हर 12 साल बाद महाकुंभ का आयोजन बहुत बड़े स्तर पर होता है. महाकुंभ में लाखों साधु-संत और देश-विदेश से लोग गंगा में डुबकी लगाने आते है. वहीं हरिद्वार के प्राचीन गंगा घाटों में से कुशावर्त घाट है, जहां पर पिंड दान करने, दसवां क्रिया करने की धार्मिक मान्यता बताई गई है.

हरिद्वार के प्राचीन गंगा घाटों में कुशावर्त घाट का विशेष महत्व बताया गया है, जहां पर गंगा स्नान करने और अपने प्रियजनों, पित्रों के निमित कार्य करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति मिलने की धार्मिक मान्यता बताई गई है. कुशावर्त घाट पर मुख्य रूप से रोजाना देश के अलग-अलग प्रांतों से लोग यहां पिंड दान, तर्पण और अस्थियां प्रवाहित करने आते है. पुरोहित कन्हैया शर्मा बताते हैं कि कुशावर्त घाट देवों और पितरों को प्रसन्न करने का एक स्थान है. इस स्थान का वर्णन विष्णु पुराण, शिव पुराण और स्कंद पुराण के केदारखंड में किया गया है. धार्मिक मान्यता है कि इस स्थान पर प्राचीन काल में कुशा के बहुत से वृक्ष हुआ करते थे. त्रेता युग में भगवान राम ने अपने पिता और समस्त पूर्वजों के उद्धार हेतु यहां पर पिंडदान और तर्पण आदि किया था. द्वापर युग में पांडवों ने इसी स्थान पर पिंड दान आदि किए थे.

बिहार के गया जी को सबसे बड़ा पितृ तीर्थ माना जाता है. गया में पितृ पक्ष के दिन पूर्ण गया जी करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिल कर मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसी के साथ ही हरि के द्वार हरिद्वार में कुशा घाट हरकी पौड़ी कनखल नारायणी शिला मंदिर की भी विशेष मान्यता है. नारायणी शिला मंदिर पर पिण्डदान और श्राद्ध कर्म करने से गया जी का पुण्य फल मिलता है. इसके अलावा हरिद्वार के इस मंदिर में श्राद्ध करने का अधिक महत्व इसलिए भी है क्योंकि माना जाता है कि गया में श्राद्ध करने से तो मात्र पित्रों को मोक्ष मिलता है, मगर हरिद्वार में नारायणी शिला मंदिर में श्राद्ध करने से पित्रों को मोक्ष के साथ ही सुख-सम्पत्ति भी मिलती है.

नारायणी शिला मंदिर के बारे में कहा जाता है कि एक बार जब गया सुर नाम का राक्षस देवलोक से भगवान विष्णु यानि नारायण का श्री विग्रह लेकर भागा तो भागते हुए नारायण के विग्रह का धड़ यानि मस्तक वाला हिस्सा श्री बद्रीनाथ धाम के बह्मकपाली नाम के स्थान पर गिरा, उनके ह्दय वाले कंठ से नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार के नारायणी मंदिर में गिरा और चरण गया में गिरे. जहां नारायण के चरणों में गिरकर ही गयासुर की मौत हो गई यानि वही उसको मोक्ष प्राप्त हुआ था. स्कंध पुराण के केदार खण्ड के अनुसार हरिद्वार में नारायण का साक्षात ह्दय स्थान होने के कारण इसका महत्व अधिक इसलिए माना जाता है, क्योंकि मां लक्ष्मी उनके ह्दय में निवास करती है इसलिए इस स्थान पर श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व माना जाता है.


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