केदारनाथ भगवान शिव का पवित्र धाम है जहां दर्शन करने मात्र से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन 16 जून 2013 को इसी केदारनाथ में मंदाकिनी नदी ने प्रलयंकारी विनाश किया था। लगातार 14 जून से 16 जून तक चली बारिश तथा बादलों के फटने ने पूरे केदारनाथ और केदारघाटी में चारों तरफ पानी ही पानी कर दिया था। माना जाता है कि इस तबाही में लगभग 50,000 से अधिक व्यक्ति लापता हो गए जबकि 110,000 से अधिक लोगों को सेना ने बचा लिया। हिन्दुओं के चार धामों में एक केदारनाथ में चट्टानें खिसकने और बर्फीले ग्लेशियर पिघलने से चारों तरफ तबाही हो गई। मंदिर परिसर को छोड़ कर कहीं भी कुछ नहीं बचा। चारों तरफ लाशों के ढेर लग गए।
रुद्रप्रयाग: ‘वैक्सीन मैन’ का गांव में बसने का सपना रह गया अधूरा, कोरोना वैक्सीन बनाने में निभाई थी अहम भूमिका
भारतीय सेना के 10,000 से अधिक जवान तथा 11 हैलीकॉप्टर्स राहत कार्य में लग गए जबकि नेवी के 45 गोताखोर लोगों को पानी में तलाश रहे थे और एयरफोर्स के 43 विमान लोगों को बचाने में लगे हुए थे। लोगों को बचाने के कार्य महीने भर से भी अधिक समय तक चलता रहा फिर भी सरकारी आंकड़ों के अनुसार राहत कार्य समाप्त होने तक 6000 से भी अधिक लोग लापता थे। इतने वर्षों में भी पुनर्निर्माण के मरहम से आपदा के जख्म पूरे नहीं भर पाए हैं। अलबत्ता आपदा में तबाह हुई केदारपुरी को संवारने की कोशिशें जारी हैं। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केदारपुरी में पुनर्निर्माण की जो शुरुआत की, उसे भाजपा सरकार ने जारी रखा।
रुद्रप्रयाग ब्रेकिंग: जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुमंत तिवारी हुए आम आदमी पार्टी में शामिल
केदारबाबा के भक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिलचस्पी के चलते केदारनाथ में पुनर्निर्माण के कार्यों ने रफ्तार पकड़ी है। पहले चरण के कार्य पूरे हो चुके हैं और दूसरे चरण के कार्यों पर काम शुरू हो गया है। 16 जून 2013 की आपदा में तबाह हुए केदारनाथ आज के केदारनाथ में जमीन-आसमान का अंतर है। ये सारे कार्य श्री केदारनाथ उत्थान चैरिटी ट्रस्ट के माध्यम से हो रहे हैं। कुल मिलाकर केदारपुरी में पुनर्निर्माण के मरहम से आपदा के जख्मों को मिटाने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन केदारपुरी से जुदा 2013 की आपदा की शिकार केदारघाटी में राहत और पुनर्निर्माण की रफ्तार में वैसी तेजी नहीं रही। जलप्रलय के खौफ ने घाटी के सैकड़ों परिवारों को मैदानों में पलायन के लिए मजबूर कर दिया। जो पहाड़ में रह गए उनकी स्मृतियों में आपदा जख्म अब भी हरे हैं। आज भी जब आसमान से मेघ बरसते हैं तो खौफनाक यादों के रूप में त्रासदी के जख्म हरे हो जाते हैं।