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देवभूमि में नमन है ऐसे द्रोणाचार्यों को, खुद के खर्चे से स्कूल में तैयार किया नया माहौल और अब…

पिछले कुछ समय से ये चर्चा आम है कि  वो सरकारी प्राथमिक स्कूल जहाँ पर बच्चों की संख्या 10  से कम  है वो जल्द ही बंद किये जायेंगे और ऐसे स्कूल के बच्चों को नजदीकी प्राथमिक स्कूल में शिफ्ट किया जाएगा, इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि आज प्राथमिक स्कूलों का स्तर  इतना ज्यादा गिर चूका है कि  कोई भी परिवार अपने बच्चों को यहाँ नहीं भेजना चाहता है। पर अगर किसी में कुछ अलग करने का जुनून  हो तो इस तस्वीर को बदला भी जा सकता है और इसके लिए शिक्षकों और बच्चों के अभिवावकों को मिलकर काम करना होता है। और इसी एक बात का उदाहरण यहाँ दे रहा है प्राथमिक विद्यालय पाही जो देवभूमि में उत्तरकाशी जिले के मुख्यालय से लगभग 42  किलोमीटर की दुरी पर भटवाड़ी ब्लॉक में स्थित  है।

बात है आज से लगभग 3  साल पहले की जब इस प्राथमिक विद्यालय पाही में बच्चों की संख्या गिरकर मात्र 4  रह गयी थी और तब इस सरकारी स्कूल में शिक्षक के रूप में तैनात थीं  रौशनी राणा और ममता नेगी और फिर साल 2017  में इस विद्यालय में प्रधानाद्यपक के रूप में तैनाती हुई शिक्षक राघवेंद्र उनियाल की।  इन तीनों शिक्षकों ने तय किया कि  स्कूल की स्थिति हर हाल में बदलनी और और इसे ऐसी हालत में लेकर आना है कि  प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे भी यहाँ आने को मजबूर हो सकें। जिसके बाद यहाँ प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर नर्सरी कक्षाएं शुरू की जानी लगी, बच्चों को बैठने के लिए फर्नीचर लगाया जाने लगा, पढ़ने के लिए स्कूल में ही प्रोजेक्टर लगाया गया, भोजन करने से पहले बच्चे अपने हाथ हैंडवाश से धोने लगे और ये सब काम यहाँ हो रहे थे उनमें तीनों शिक्षक अपनी तनख्वाह से पैंसे  जुटा रहे थे।

उसके बाद बच्चों को प्रोजेक्टर के माध्यम से पढ़ाया जाने लगा, खेल खेल में उनका बौद्धिक स्तर बढाया जाने लगा, कार्टून के जरिये नर्सरी बच्चों की पढ़ाई होने लगी जिसके बाद से एकदम ही यहाँ का माहौल बदला-बदला सा नजर आने लगा। इन तीनों शिक्षकों की इसी मेहनत और समर्पण का नतीजा है कि जिस स्कूल में 2 साल पहले छात्र संख्या मात्र 4 रह गयी थी वहां 2 साल बाद ही छात्र संख्या बढ़कर अब 28 हो गयी है। तो हकीकत ये है कि अगर सरकारी स्कूलों में वो सब सुविधायें मिलनी लगे जो अभिवावक अपने बच्चों के लिए चाहते हैं तो क्यूँ अभिवावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में महंगी फीसों में पढ़ाने को मजबूर होंगे। बस जरुरत है देवभूमि में कुछ और ऐसे ही द्रोणाचार्य निकलें जो इस बात के लिए सभी को प्रेरित करैं और खुद भी समर्पण दिखाकर काम करना चाहें।


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