आज से 20 साल पहले साल 1999 में देश के जवानों ने कारगिल में दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया था। कारगिल युद्ध जब शुरू हुआ था तो उससे पहले देहरादून के बड़ोवाला निवासी शहीद सुरेंद्र सिंह दो माह की छुट्टी पर घर आए थे। छुट्टी खत्म होने पर सुरेंद्र ड्यूटी चला गया था। शहादत से पांच दिन पहले सुरेंद्र ने फोन कर बताया था कि वह सकुशल हैं। लेकिन उसके बाद उसकी शहादत की खबर परिजनों को मिली। सुरेंद्र की शहादत में प्रेमनगर में बनाए गए स्मारक को आज भी मां रोज सफाई करने जाती हैं। करगिल दिवस पर बेटे को याद कर मां-पिता की आंखें भर आई। मां गोमती देवी अपने बेटे को याद कर बताती हैं कि उनका बेटा सुरेंद्र उनसे बहुत प्यार करता था। वर्ष 1994 में बेटा सेना में भर्ती हुआ था। बचपन से वह सेना में जाने का इच्छुक था। जब भर्ती हुआ था तो बिना बताए चला गया था। जब उसकी शहादत हुई तब वह महज 22 साल का था।
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बेटे को याद करते हुए नम आंखों से मां गोमती देवी बताती हैं कि करगिल युद्ध से पहले सुरेंद्र दो माह की छुट्टी पर घर आया था। उस समय उसने उन्हें कई जगह घुमाया था। छुट्टी खत्म होने के बाद वह ड्यूटी पर चला गया था। युद्ध जब शुरू हुआ तो इससे पांच दिन पहले सुरेंद्र का पास स्थित एसटीडी में फोन आया था। फोन पर उसने बताया था कि मां वह ठीक है। यहां सब ठीक चल रहा है। उसके बाद वह निश्चिंत थे। लेकिन सात जुलाई को फोन से उन्हें सुरेंद्र की शहादत की खबर मिली। सुरेंद्र के पिता सुजान सिंह नेगी बताते हैं कि बेटे की खबर सुनकर उसकी मां सुधबुध खो बैठी थी। बड़ी मुश्किल से उसे संभाला। बेटे की याद में मां ने घर के बगल में मंदिर बनाया है। उसमें वह सुबह-शाम सुरेंद्र की पूूजा करती हैं। प्रेमनगर में सुरेंद्र के नाम से एक शिलापट लगाया है। उसकी मां रोज सुबह जाकर शिलापट की सफाई कर फूल आदि चढ़ाती हैं। मां गोमती कहती हैं कि उन्हें गर्व है कि उनके बेटे ने देश के लिए शहादत दी।