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बाबा बमराड़ा का निधन जानिये वो घटना जिसके बाद युवा बमराड़ा बन गये थे राज्य आन्दोलनकारियों के पुरोधा

अलग उत्तराखंड राज्य की अलख जगाने वाले महान योद्धा और और वयोवृद्ध आन्दोलनकारी बाबा मथुरा प्रसाद बमराड़ा कल इस दुनियां से हमेशा के लिए विदा हो गये। वे अलग उत्तराखंड राज्य राज्य की मांग के लिए हमेशा स्व. इंद्रमणि बडोनी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते रहे पर उन्हें कभी भी राज्य और उत्तराखंड की जनता से वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे।

मथुरा प्रसाद बमराड़ा का जन्म भारत की आजादी से पहले सन 1941 में के इडवाल्स्यु पट्टी के ग्राम पडियां में हुआ था, अपने गांव के पास किशौली प्राथमिक स्कूल से ही उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। बाद में उनके पिता ने संस्कृत की पढाई के लिए उन्हें मथुरा भेज दिया था। बचपन में ही उनकी माँ की मृत्यु होने के कारण उनका लालन पालन उनके पिता श्री कुलानंद बमराड़ा ने किया था। पर पढाई में बाबा बमराड़ा की बहुत अधिक रूचि नहीं थी, उन्हें शौक था एक्टिंग का तो वो अपना ये शौक लेकर तब मुंबई पहुँच गये थे वो वहां तब तमाम स्टूडियो में इधर से उधर भटकते रहे पर उन्हें कहीं भी काम नहीं मिला और धीरे धीरे उनके पास जो धन था वो भी खत्म होने लगा।

उसके बाद निराश होकर वो दिल्ली 1969-1970 में वापस आ गये जहाँ उनके पिता ने उनके लिए चश्मों की एक दूकान खोल दी पर यहाँ भी बदनसीबी ने उनका साथ नहीं छोड़ा और उनकी दुकान आग लगने के कारण ख़ाक हो गयी।  उस समय वह दिल्ली में  उत्तराखंड की कई संस्थाएं संस्कृति और लोकमंचों पर काम कर रही थीं, इस समय रेडियो पर एक प्रसंग आया जिसमें गहने की चोरी करने वाले एक पात्र को गढ़वाल के जिले का बताया गया, इस पर उत्तराखंड के बुद्धिजीवियों ने कड़ा ऐतराज जताया और दिल्ली में जगह जगह आन्दोलन शुरू कर दिए, जिसके बाद तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने इस रूपक पर नाराजगी जतायी और फिर रडियो को इस मुद्दे पर माफी मांगनी पड़ी। यही वह घटना थी जिसने बाबा बमराड़ा के मन में उत्तराखंड के पृथक राज्य की भावना की अलख जगा दी थी। और वो फिर अलग राज्य के मांग को लेकर सक्रिय हो गये और उन्होंने पूरे देश और राज्य में इसके लिए आन्दोलन तेज कर दिए थे।