ये पूरा वाकया है उत्तराखंड में निवास करने वाले अनुसूचित जाति-जनजाति के ऐसे छात्र-छात्राएं जो मेडिकल या इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे थे, उन्हें मुफ्त लैपटॉप देने की घोषणा मुख्यमंत्री ने दिसंबर 2014 में तात्कालिक मुख्यमंत्री हरीश रावत ने की थी। घोषणा के बाद बजट में पांच करोड़ रुपये का प्रावधान भी खरीद के लिए किया गया। समाज कल्याण विभाग को इस रकम से लगभग डेढ़ हजार लैपटॉप खरीदने थे, मगर किन्हीं कारणों से यह काम आईटी विभाग को सौंप दिया गया। लगभग दो साल तक खरीद नहीं हो पाई। इसके बाद गुपचुप तरीके से गर्वनमेंट ई-मार्केट प्लेस का उपयोग करके खरीद की गई थी।
निर्धारित खूबियों वाले लैपटॉप आईटी विभाग ने 34850 रुपये मूल्य की दर से खरीदे। आनन-फानन में इन्हें बांटने का काम भी शुरू हो गया था। अनुसूचित जाति-जनजाति के छात्र-छात्राओं को देने के लिए लैपटॉप बाजार भाव से अधिक मूल्य पर खरीदे जा रहे हैं। पांच करोड़ रुपये की इस खरीद में सरकार को करीब एक करोड़ का नुकसान होना तय है। कुल 1425 लैपटॉप के खरीद का ऑर्डर दिया गया था, जिसमें से 285 लैपटॉप डिलीवर भी किए जा चुके थे। इसके बाद एससी-एसटी छात्रों को बांटने के लिए आईटी विभाग ने खराब लैपटॉप मंगाए थे। इस खराबी का पता तो विभाग को तीन साल पहले ही लग गया था लेकिन इन्हें गोदाम में दबाए रखा गया। छात्र लैपटॉप मिलने का इंतजार ही करते रहे।
अब पता चला कि विभाग ने इन्हें कंपनी को वापस कर दिया है। इसके लिए अब दोबारा टेंडर प्रक्रिया शुरू की जाएगी। ऐसे में जनजाति विभाग में करीब दो साल तक वह लैपटॉप धूल फांकते रहे। अब जब शासन ने प्रकरण की जानकारी मांगी तो अपना पल्ला झाड़ते हुए अधिकारियों ने जवाब दिया कि लैपटॉप वापस कर दिए गए हैं। कंपनी के पास से वापस आए पांच करोड़ रुपये बहुउद्देशीय विकास निगम के पास हैं। पर यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो छात्र 3 साल पहले तक इसके उम्मीदवार थे वो क्या आज भी उम्मीदवार रह पायेंगे? और अगर नहीं तो उन मासूमों के साथ इतना बड़ा धोका क्यूँ? और क्यूँ सरकारी खजाने पर इस तरह की लूट लगी रहती है और वो भी घटिया सामान के नाम पर?