Home उत्तराखंड देवभूमि में लागू होगा एनआरसी, घुसपैठियों पर वार करेगी उत्तराखंड की सरकार

देवभूमि में लागू होगा एनआरसी, घुसपैठियों पर वार करेगी उत्तराखंड की सरकार

इस समय पूरे देशभर की राजनीति में सबसे गर्मागर्म मुद्दा बना हुआ है एनआरसी। यह सबसे पहले असम में 1951 में पंडित नेहरू की सरकार द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बारदोलोई को शांत करने के लिए किया गया था। बारदोलाई विभाजन के बाद बड़ी संख्या में पूर्वी पाकिस्तान से भागकर आए बंगाली हिंदू शरणार्थियों को असम में बसाए जाने के खिलाफ थे। इसके बाद असम की राजनीति में यह सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। वर्ष 2015 में असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एनआरसी का काम फिर से शुरू कर दिया था जिससे अवैध घुसपैठियों की पहचान की जा सके।

हाल ही में अब असम में एनआरसी की सूची भी जारी की जा चुकी है। और अब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेश में घुसपैठियों को निकाल बाहर करने के लिए राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) की कवायद शुरू करने के संकेत दिए हैं। सीमांत प्रदेश होने के कारण प्रदेश के सीमा वाले क्षेत्रों में हमेशा से घुसपैठ का अंदेशा रहा है, लेकिन प्रदेश के मैदानी जनपदों में जिस तरह से गैर उत्तराखंडी आबादी का फैलाव हुआ है। उससे राज्य के हुक्मरानों और नीति नियंताओं को कुछ हद तक सोचने के लिए मजबूर जरूर किया है।

इससे पहले बीजेपी शाषित राज्य हरियाणा, उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र सरकार ने भी एनआरसी लागू करने की बात कही है। अब उत्तराखंड भी इसी दिशा में आगे बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि मंत्रिमंडल में चर्चा कर इसे लागू करने को लेकर अंतिम निर्णय लिया जाएगा। पिछले करीब एक दशक के दौरान उत्तराखंड में प्रदेश से बाहर के लोगों की आमद हुई है। हरिद्वार, देहरादून और ऊधमसिंह नगर को इस मामले में ज्यादा संवेदनशील माना जाता है।


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