अगर आप पहाड़ों में ऊँची जगहों का रुख करेंगे तो आपको वहां काफी अधिक मात्रा में बॉस के पेड़ दिखाई देंगे, और पहाड़ में इनको शुरू से ही बेकार ही समझा जाता है और कोई इनकी सही तरह से देखभाल भी नहीं करता है। लेकिन वक्त के साथ-साथ लोगों को इसकी अहमियत अब धीरे-धीरे समझ आ रही है क्यूंकि आजकल घरों की खूबसूरती में चारचांद लगाने के लिए बांस के उत्पाद खूब इस्तेमाल हो रहे हैं जैसे लैंप, फ्लावर पॉट, फ्रेम समेत बांस से बनी विभिन्न आकृतियां और फर्नीचरों की मार्केट में खूब डिमांड की जा रही है। अब लोगों के लिए बांस कोई बेकार पेड़ नहीं बल्कि लाखों कमाने का जरिया बन सकता है क्यूंकि बांस की खेती किसानों के लिए हरा सोना साबित हो सकती है।
इस समय जरुरत है तो सिर्फ उपयोगिता समझकर व्यवस्थित तरीके से इसकी खेती करने की इसके लिए नर्सरी से लेकर पौधरोपण तक किसानों के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, सरकार की राष्ट्रीय बांस मिशन योजना के तहत किसानों की स्थिति में बड़ा परिवर्तन आ सकता है। इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार मिलकर प्रयास भी कर रही है बेरोजगार और युवाओं को पहाड़ में ही कुछ करने के लिए एक हेक्टेयर भूमि में बांस की खेती करने पर 50 हजार रुपये की सब्सिडी तक दी जा रही है, नर्सरी के लिए भी सब्सिडी का प्रावधान किया गया है। बांस की ये पौध उत्तराखंड बांस एवं रेशा परिषद देहरादून की ओर से उपलब्ध कराई जा रही है।
यह सब्सिडी तीन वर्ष में तीन किश्तों में दी जाएगी और छोटे काश्तकारों को बांस की खेती करने पर एक पौधे पर 120 रुपये की सब्सिडी भी मिलेगी इसके बाद तीन साल बाद बांस तैयार होने पर परिषद बांस बेचने का बाजार भी तय करेगी। बांस के अलावा इसकी ही एक अन्य प्रजाति रिंगाल के लिए भी किसानों और काश्तकारों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। शशि कुमार दत्त, सीइओ, बांस व रेशा विकास परिषद, देहरादून ने बताया कि बांस व रिंगाल की खेती से लोगों को अपने घर पर ही रहकर पक्का रोजगार मिल सकेगा और जिससे रोजगार के लिए दूसरे महानगरों की ओर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बांस की खेती करना भी बहुत आसान है, इसके लिए कम जमीन में ही अच्छा उत्पादन किया जा सकता है और इसे कोई भी व्यक्ति थोड़ी जमीन पर भी उगा सकता है।