देवभूमि उत्तराखंड के लिए इससे ज्यादा शमर्नाक और क्या हो सकता है जब राज्य और केंद्र में डबल इंजन की सरकार बैठी हो उसके बाद भी साल 2006 से भागीरथी नदी पर टिहरी बांध प्रभावित क्षेत्र प्रतापनगर और थौलधार को जोड़ने के लिए 760 मीटर लंबे डोबरा-चांटी पुल का निर्माण किया जा रहा है और उम्मीद जताई जा रही कि हर हाल में ये काम दिसंबर 2018 तक ये पूरा हो जाएगा और फिर इस बहुप्रतीक्षित पुल पर लोगों का आवागमन शुरू कर दिया जाएगा। 42 वर्ग किलोमीटर तक फैली टिहरी डैम की झील के ऊपर प्रतापनगर को जोड़ने वाले डोबरा-चांठी पुल के निर्माण इन दिनों अपने अंतिम चरण में था।
उत्तराखंड सरकार ने भी प्रतापनगर लोगों की समस्या को समझते हुए इसके लिए 70 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे जिससे कि शीघ्र पुल निर्माण का कार्य पूरा किया जा सके। लेकिन ये पुल है कि पूरा होने का नाम नहीं ले रहा है और अब फिर से इसमें एक तकनीकी समस्या सामने आ गयी है। इस पुल के सस्पेंशन ज्वाइंट 50 टन का भार झेलने लायक बनाए गये थे लेकिन इसके कई सारे ज्वाइंट 12 टन पर ही टूट गये हैं। और अब इस पुल के सभी ज्वाइंट कि उषा मार्टिन कंपनी की रांची लैब में भेजा जा रहा है और इस तकनीकी खामी की वजह से इस पुल का निर्माण कार्य पूरा होने में अब 6 से 8 महीने अधिक लगेंगे।
साल 2006 में जब डोबरा-चांटी पुल का निर्माण कार्य शुरू किया गया था तब इसपर लगभग 240 करोड़ रुपये खर्च किये गये थे लेकिन डिज़ाइन फेल होने की वजह से पुल का काम पूरा नहीं हो पाया था इसके बाद साल 2016 से इस पुल के निर्माण की जिम्मेदारी लोनिवि के पास है जिसने कोरिया की एक कंपनी के डिज़ाइन के आधार पर पुल निर्माण का कार्य शुरू किया था। लेकिन अब एकबार फिर इसमें तकनीकी खामी आ गयी है जिसके बाद अब पुल साइट पर ही सस्पेंशन ज्वाइंट बनाए जाने हैं। आपको बता दें 760 मीटर लंबे डोबरा-चांटी झुला पुल को 440 मीटर लम्बे रस्सों के सहारे टिकाना है इन रस्सों पर 900 सस्पेंशन ज्वाइंट लगने हैं और अगर एक भी सस्पेंशन ज्वाइंट टूट जाता है तो पूरे पुल का बेलेंस ख़राब हो जाएगा जिससे कोई बड़ी दुर्घटना भी हो सकती है।