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उत्तराखंड: लोकतंत्र का पर्व मनाने सात समंदर पार से वोट देने पहुंचे प्रवासी, कही ये बड़ी बातें

रोजी-रोटी की जुगत में भले ही ये लोग अपनी माटी से दूर चले गए हों, मगर वतन के प्रति अपनी जिम्मेदारी एवं कर्तव्य निभाने को पूरी तरह सजग हैं। यही वजह है कि विदेशों में नौकरी की व्यस्तताओं के बावजूद अप्रवासी उत्तराखंडी देश में नई सरकार चुनने के लिए छुट्टी लेकर घर आए हुए हैं। खास बात यह कि हर किसी का मतदान के पीछे अपनी विशेष सोच है। कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना मत प्रकट करना चाहता है, तो कोई ऐसी सरकार चाहता है, जो पलायन रोकने की दिशा में काम करे। अप्रवासी उत्तराखंडी यह भी चाहते हैं कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव तक सरकार यह व्यवस्था कर दे कि देश से बाहर रहने वाले नागरिक वहीं रहकर मतदान कर सकें।

चमोली जिले के कैबल गांव निवासी चंद्रप्रकाश गैरोला दुबई में एक बीमा कंपनी में कार्यरत हैं। चुनाव में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए वह छुट्टी लेकर वतन लौट आए हैं। लंबे समय से वह खाली होते पहाड़ों में पलायन की रफ्तार थामने के लिए काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि विश्व के 208 देशों में 3.10 करोड़ भारतीय रह रहे हैं। जो हर साल 5.5 लाख करोड़ रुपये भारत भेजते हैं। ऐसे में केंद्र सरकार को कुछ-न-कुछ ऐसे इंतजाम करने चाहिए कि अप्रवासी भारतीय अपने-अपने स्थानों पर रहकर ही मतदान कर सकें। चंद्रप्रकाश गल्फ देशों में काम कर रहे भारतीय नागरिकों को मतदान के लिए प्रेरित करते रहते हैं।

चीन में नौकरी करने वाली नैनीताल निवासी प्रो. गायत्री कठायत भी मतदान के लिए अपने घर आई हुई हैं। वह भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के लिए हर बार अपने मताधिकार का प्रयोग करती हैं। टिहरी की भिलंगना घाटी के खवाड़ा गांव निवासी त्रेपन सिंह स्पेन में काम करते हैं और इन दिनों मतदान के लिए गांव लौटे हैं। बताते हैं कि उनके गांव के 20 लोग विदेश में नौकरी करते हैं, जिनमें से 10 लोग मतदान के लिए घर वापस आए हैं। इसी तरह जापान में रह रहे भिलंगना घाटी के ही सरपोली गांव निवासी आलोक सिंह भी छुट्टी पर घर आए हैं। ताकि नई सरकार चुनने में अपनी भागीदारी निभा सकें। ओमान में काम करने वाले सरपोली के ही दिनेश लाल बताते हैं कि उनके क्षेत्र के 15 लोग मतदान के लिए विदेश से घर आए हैं।

टिहरी जिले के घनसाली ब्लॉक के सिल्यारा निवासी भारती रावत भी उन अप्रवासियों में शुमार हैं, जिन्होंने मतदान में योगदान को अपने गांव की राह पकड़ी। वह पति के साथ स्पेन में रहती हैं और कहती हैं कि यदि हम सरकार से विकास की मांग करते हैं तो इसके लिए उपयुक्त सरकार के चुनाव में भी योगदान करना चाहिए। घनसाली से ही सटे जखन्याली निवासी गणेश श्रीयाल भी मतदान के लिए अपने गांव में मौजूद हैं। उनका कहना है कि विदेश से घर आने में भले ही खर्च अधिक हो जाता है, मगर देश के भविष्य के लिए यह कुछ भी नहीं। उनकी यह भी मांग है कि विदेशों में रह रहे भारतीयों के लिए वहीं मतदान की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए।

चंबा ब्लॉक के ग्राम थान निवासी होशियार सिंह व तिरसियाड़ा निवासी बिजेंद्र भट्ट भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। ओमान में नौकरी कर रहे होशियार व स्विट्जरलैंड में कार्यरत बिजेंद्र भट्ट का कहना है कि यदि अप्रवासी भारतीयों के लिए विदेश में ही मतदान की व्यवस्था हो जाए तो न सिर्फ मत प्रतिशत बढ़ेगा, बल्कि बेहतर सरकार भी देश को मिल सकेगी। टिहरी की नैलचामी पट्टी स्थित मुयाल गांव के 12 युवक वोट डालने के लिए जर्मनी से घर लौटे हैं। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का हिस्सा बनकर उन्हें गर्व है और सभी मतदान को लेकर बेहद उत्साहित हैं। इस गांव के 32-वर्षीय मनोज नौटियाल कहते हैं कि अपने इस दायित्व को निभाना उन्हें बेहद खुशी देगा। हालांकि, नई सरकार बनने का पता उन्हें जर्मनी जाकर ही चलेगा। क्योंकि, उनकी छुट्टी 18 अप्रैल तक ही है। इसी तरह विनयखाल ही राजीव भट्ट, ऋषिकेष श्यामपुर निवासी कृष्णा सेमवाल, भिलंग कोठार निवासी ङ्क्षचतामणी नवानी भी मतदान के लिए भारत आए हैं।


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