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गढ़वाल का खुशीराम भेज्जी… खेती छोड़ और पलायन कर चुके लोगों को दिखा रहें है स्वरोजगार का रास्ता

आज जब अधिकांश उत्तराखंड में ज्यादातर लोगों ने खेती से मुंह मोड़ लिया है और बाज़ार से बासी सडी सब्ज़ी जो हानिकारक कीटनाशकों से तर है लोग उनको खाने को मजबूर है। ऐसे में आज खुशीराम जी का पूरा परिवार खेती में मग्न है जंगली जानवर तो उनके वहाँ भी है किंतु जब इच्छाशक्ति हो तो इंसान हर कोशिश करता है कामयाब होने के लिये उन सभी के लिये उदाहरण है। चंबा ब्लॉक के चोपड़ियाल गांव निवासी प्रगतिशील किसान खुशीराम डबराल ने टिहरी जिले में नकदी फसलों को नई पहचान दी है। खुशीराम 80 नाली भूमि में नकदी फसलें उगाकार स्वरोजगार को तो बढ़ावा दे ही रहे हैं, स्थानीय महिलाओं को रोजगार के साथ आधुनिक खेती का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। उनके उत्पादों के विदेशों में रहे प्रवासी उत्तराखंडी तक मुरीद हैं। इस साल वह सात लाख रुपये की सब्जियां बेच चुके हैं।

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परिवार के खेती से जुड़े होने के कारण खुशीराम ने भी इंटर करने के बाद खेती को ही रोजी का जरिया बनाया। वर्ष 2002 से उन्होंने असिंचित भूमि में नकदी फसलें उगाना शुरू किया और आज वह क्षेत्र के समृद्ध काश्तकारों में शुमार हैं। बकौल खुशीराम, ‘बीते वर्ष तक मैं सालाना चार से पांच लाख की सब्जियां बेचता था। इस बार इसमें दो लाख का इजाफा हुआ है। ‘ खुशीराम बंदगोभी, फूलगोभी, टमाटर, शिमला मिर्च, ब्रोकली, पहाड़ी ककड़ी, खीरा, मटर, राजमा आदि का उत्पादन कर रहे हैं। इसके लिए इंडियन सोसाइटी ऑफ हॉर्टिकल्चर रिसोर्स ऑफ डेवलपमेंट की ओर से बीते दस दिसंबर को उन्हें लखनऊ में देवभूमि बागवानी पुरस्कार प्रदान किया गया क्षेत्र में कहीं भी सिंचाई की सुविधा नहीं है। खुशीराम ने वर्षाजल के संरक्षण को 1800 लीटर के तीन टैंक बनाए हैं। खेतों में टपक सिंचाई मशीन भी लगाई गई है, ताकि फसलों को ठीक ढंग से पानी मिलता रहे। जो लोग कुछ रुपये कमाने के लिये शहरों की ओर दौड़ रहे है आशा करते है युवाओं को इनसे प्रेरणा मिलेगी और वो भी स्वरोजगार के लिये आगे आयेंगे।

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