पिछले कुछ समय से उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी में हालात ठीक नहीं चल रहे हैं, क्यूंकि प्रदेश में पार्टी दो गुटों में बंटी हुई दिख रही है एक गुट है पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का तो वहीँ दूसरा गुट है नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश का। नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश पूर्व मुख्यमंत्री पर उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी का माहौल खराब करने का लगातार आरोप लगाती आ रही हैं, बात करैं कुछ समय पूर्व की तो उत्तराखंड का जो प्रतिनिधि मंडल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने गया था उसमें हरीश रावत भी शामिल थे। और अब लगता है आलकमान ने भी उत्तराखंड में नेताओं की आपसी खींचातान से बचने के लिए और एक सम्मान जनक रास्ता चुनने के लिए उत्तराखंड कांग्रेस में ये दांव चला है।
कांग्रेस की राष्ट्रीय स्तर पर शीर्ष इकाई कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) में अब उत्तराखंड को भी अहम जिम्मेदारी दी गयी है वो वो है सीडब्ल्यूसी में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को जगह मिलना। अलग उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पहला मौका है जब किसी व्यक्ति को कांग्रेस में इतनी अहम जिम्मेदारी दी गयी है इससे पहले दिग्गज कांग्रेसी नेता नारायण दत्त तिवारी को सीडब्ल्यूसी में अहम जिम्मेदारी दी गयी थी। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कांग्रेस पार्टी के 23 सदस्यीय सीडब्ल्यूसी में शामिल हो चुके हैं, इस कमेटी में पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन जैसे दिग्गज कांग्रेसी भी शामिल हैं। कांग्रेस पार्टी ने हरीश रावत को राष्ट्रीय महासचिव बनाने के साथ ही असम का प्रभारी भी नियुक्त किया है, इस खबर के बाद से उत्तराखंड के कांग्रेसी संगठन में ख़ुशी की लहर है।
अब भले ही राष्ट्रीय स्तर पर हरीश रावत का कद बढ़ाया गया हो जिससे उत्तराखंड का दखल बढ़ना भी तय है पर वहीँ दूसरी ओर अब केन्द्रीय राजनीति में अधिक दखल रखने के कारण उत्तराखंड पर पूर्व मुख्यमंत्री की पकड़ कम होना तय है। पर हरीश रावत को केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी मिलने का साफ़ असर आगामी 2019 लोकसभा चुनावों में देखने को मिल सकता है क्यूंकि उत्तराखंड में कांग्रेस के लिए नीति निर्धारण करने में पूर्व मुख्यमंत्री की अब अहम भूमिका रहने वाली है।