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उत्तराखंड में पत्थर फेंकने वाला अनोखा त्योहार ‘बग्वाल’ मनाया गया, जानिये इसके बारे में सबकुछ

देवभूमि उत्तराखंड में अनेक ऐसे त्यौहार हैं जो अपने आपमें एक ख़ास विशेषता लिए हुए हैं इन्ही में से एक त्यौहार है जो हर साल रक्षाबंधन के दिन कुमाऊँ के चंपावत जिले के बाराही धाम देवीधूरा में ऐतिहासिक बगवाल खेली गई। माना जाता है कि इस त्यौहार में पुराने समय में देवी को प्रसन्न करने के लिये हर साल मानव बलि दी जाती थी। मान्यता के अनुसार, मानव बलि देने के लिये जब एक बूढी औरत के एकमात्र पोते की बारी आयी तो उसने देवी से उसका एकमात्र वारिस होने के कारण उसे छोड देने की प्रार्थना की थी।

फिर देवी ने उसकी प्रार्थना सुन ली और वह अपने भक्तों के स्वप्न में आयीं और उनसे एक दूसरे पर पत्थर फेंक कर बग्वाल खेलने तथा जमीन पर उतना रक्त बहाने को कहा जितना एक मानव बलि के बराबर हो।  तो तबसे ही ये प्रथा यहाँ चली आ रही है हांलांकि, बग्वाल के दौरान पत्थरों के प्रयोग पर उच्च न्यायालय का प्रतिबंध है लेकिन फिर भी स्थानीय युवा अधिकारियों को चकमा देकर इसका प्रयोग कर लेते हैं।

बाराही धाम देवीधुरा में 15 अगस्त के दिन खोलीखाड़ दुर्बाचौड़ मैदान में खेली गई ऐतिहासिक बगवाल को देखने के लिए वहां हजारों लोग साक्षी बने। करीब दस मिनट तक चले बगवाल युद्ध में 122 लोग घायल हुए, जिन्हें प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई। यह त्यौहार हर साल रक्षाबंधन के दिन श्रावण की पूर्णिमा पर बारही देवी को प्रसन्न करने के लिये मनाया जाता है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि देवी तभी प्रसन्न होती हैं जब खेल के दौरान एक मानव बलि के बराबर लहू बहाया जाये।


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