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दो गांवों के बीच होता है गागली युद्ध, लड़ाई में किसी की हार-जीत नहीं होती, जानिये पूरा किस्सा

देवभूमि उत्तराखंड में इतने सांस्कृतिक और धार्मिक रंग हैं कि जिसकी पूरे देशभर में किसी अन्य जगह पर मिलना नामुमकिन है एक ऐसे ही किस्से से हम आपको यहाँ रूबरू करवा रहे हैं, जहाँ उत्तराखंड के देहरादून के जौनसार-भाबर इलाके में हर साल दशहरे के दिन दो गांवों के मध्य गागली युद्ध का आयोजन किया जाता है। इस युद्ध में दोनों गांवों के लोग एक दूसरे से गागली (अरबी) के पत्ते और डंठल से लड़ते हैं और ये लड़ाई किसी की जीत या हार के लिए नहीं होती बल्कि ये होती है पश्चाताप के लिए और लड़ाई के अंत में दोनों गांवों के लोग एक दूसरे को गले लगाते हैं।

गागली युद्ध की कहानी कालसी ब्लॉक के उत्पाल्टा गांव की बैराण और पथान परिवार की रानी और मुन्नी दो बहनों के बीच की है, बात सदियों पहले की है जब दोनों बहनें गांव से कुछ दूर स्थित क्याणी नामक स्थान पर कुएं में पानी भरने जाती हैं, और इस बीच रानी अचानक कुएं में गिर जाती है। मुन्नी ने घर पहुंचकर रानी के कुएं में गिरने की बात गाँव वालों को बताई तो गाँव वालों ने मुन्नी पर ही रानी को कुएं में धक्का देने का आरोप लगा दिया था, जिस पर मुन्नी ने भी कुएं में छलांग लगा जान दे दी। इस एक घटना के बाद ग्रामीणों को बहुत पछतावा हुआ था।

इसी एक घटना को याद करके पाइंता से दो दिन पहले मुन्नी और रानी की मूर्तियों की पूजा यहाँ की जाती है और फिर पाइंता के दिन मूर्तियां कुएं में विसर्जित की जाती हैं। कलंक से बचने के लिए उत्पाल्टा और कुरोली के ग्रामीण हर वर्ष पाइंता पर्व पर गागली युद्ध का आयोजन कर पश्चाताप करते हैं। इसके बाद उत्पाल्टा और कुरोली के ग्रामीण ढोल-नगाड़ों की थाप पर गागली युद्ध के लिए देवधार के लिए चले जाते हैं ग्रामीणों के हाथ में गागली के पत्ते और डंठल थे। जिसके बाद पश्चाताप की आग में जल रहे ग्रामीणों के बीच युद्ध हुआ। इस मौके पर युद्ध को लेकर दोनों गांवों के ग्रामीणों में विशेष उत्साह रहा जौनसार के इस अनूठे युद्ध को देखने के लिए आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में ग्रामीण मौजूद रहे। दोनों गांवों के लोग अपने-अपने गांव के सार्वजनिक स्थल पर एकत्रित होकर ढोल-नगाड़ों और रणसिंघे की थाप पर नाचते-गाते नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर देवधार नामक स्थल पर पहुंचे।


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