बात है आज से लगभग 100 साल पहले की जब देशभक्ति का जज्बा लिए भनार गांव के रहने वाले दौलत सिंह कोरंगा के घर पदम सिंह का जन्म 1918 में हुआ था। पदम सिंह में देशभक्ति का जूनून ऐसा था कि वो अपनी भारत माता के लिए कुछ करना चाहते थे। उस समय पूरे भारत में आजाद हिन्द फौज का जज्बा भी अपने पूरे उबाल पर था साल 1942 में अल्मोड़ा गए और पदम सिंह का वहां आजाद हिंद फौज में चयन हो गया। लखनऊ में तीन महीने के प्रशिक्षण लेने के बाद उनकी पूरी ब्रिगेड आगरा चली गई। उसके बाद यहां से वह मुंबई गए और जहाज से सिंगापुर पहुंचे। छह महीने तक युद्ध करते वह जापान के कैदी हो गए थे।
उस समय जेलों में अंग्रेजों को अलग और हिंदुस्तानियों को अलग रखा जाता था। हिंदुस्तानियों को गांधी के आदमी के नाम से पुकारा जाता था। जेल से बाहर आने के बाद देश के लिए लड़ाई लड़ते हुए बैंकाक होते हुए वह रंगून पहुंचे। यहां भी उन्हें जियाबाड़ी और वर्मा की जेलों में बंद होना पड़ा। इस दौरान उन्होंने कई यातनाएं सहीं। अंत में देश की आजादी से कुछ समय पहले वह अपने घर वापस आ गए थे। दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी पदम सिंह कोरंगा को तत्कालीन दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने वर्ष 1985 में दिल्ली में सम्मानित किया था। नौ नवंबर 2001 को देहरादून में आयोजित कार्यक्रम में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने भी उन्हें सम्मानित किया था।
कपकोट ब्लॉक के सुदूरवर्ती भनार गांव के पांखू तोक निवासी आजाद हिंद फौज के स्वतंत्रता सेनानी पदम सिंह कोरंगा का अब 101 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। प्रशासन की ओर तहसीलदार मेनपाल सिंह और पुलिस अधीक्षक महेश जोशी ने कोरंगा के पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित की। सरयू और गोमती के संगम पर राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया है। स्वतंत्रता सेनानी की चिता को उनके बेटे खुशहाल सिंह और खीम सिंह ने मुखाग्नि दी। जब उत्तराखंड में बीसी खंडूरी मुख्यमंत्री थे तो उस समय स्वतंत्रता सेनानी पदम सिंह कोरंगा को ताम्रपत्र और 20 हजार रुपया नकद भेंट किए थे। 09 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी उन्हें सम्मानित किया था।