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चुनाव 2019: आज उत्तराखंड में चुनाव प्रचार का अंतिम दिन, ऐसा फीका प्रचार कभी नहीं देखा

याद आता है आज से 15-20 साल पुराने वो किस्से जब चुनाव का वक्त होने के दौरान अपने गाँव में भी हर दिन किसी न किसी पार्टी के प्रत्यासी चुनाव प्रचार के लिए आया करते थे, हम भी बचपन में उस समय उस रैली के पीछे शामिल हो जाते थे और जोर शोर से हल्ला मचाते रहते थे क्यूंकि वो समय हमारे लिए उत्सव जैसा होता था। पूरे दिन में मुश्किल ही कोई वक्त होता होगा जब माँ-पापा को हम घर पर मिलते होंगे, पर अब अगर वर्तमान परिदृष्य की बात करैं तो वो रंगत गायब नजर आती है| वैसा माहौल अब कहाँ| उत्तराखंड में आज यानी 9 अप्रैल को चुनाव प्रचार का अंतिम दिन है लेकिन, पहाड़ की पगडंडियों से लेकर मैदानी शहरों तक में चुनाव की रंगत गायब नजर आ रही है।

निर्वाचन आयोग के जागरूकता से जुड़े पोस्टर और होर्डिंग तो जहाँ तहां खूब नजर आ रहे हैं मगर, प्रत्याशियों और दलों की प्रचार सामग्री पूरी तरह से गायब नजर आ रही है। चुनाव प्रचार के दौरान आमतौर पर एक तरह से पूरे भारत में मेले जैसे माहौल होता है। लेकिन 2019 के आम चुनाव बेहद खामोशी से प्रचार के लिए जाने जाएंगे और मेले जैसा माहौल धीरे-धीरे खत्म होता नजर आ रहा है। उत्तराखंड के छोटे कस्बों और गांवों में तो क्या देहरादून, हरिद्वार और हल्द्वानी  जैसे शहरों में होर्डिंग, कटआउट, पोस्टर और वॉल राइटिंग बहुत सीमित नजर आ रही है।

बस्तियों की चहल-पहल भी गायब है, छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएं, डोर-टू-डोर कैम्पेन भी इस बार जोर नहीं पकड़ पाया है| यहां तक कि अब निर्वाचन मशीनरी के अधिकारी भी इस चुनाव को एक्स्ट्रा कूल करार देते नजर आ रहे हैं। लेकिन, अफसरों की चिंता इस खामोशी का असर मत प्रतिशत पर पड़ने के रूप में दिखने लगी है। उत्तराखंड की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से पांच प्रतिशत अधिक है लेकिन यहाँ हर बात राष्ट्रीय औसत से कम मतदान होता आया है उत्तराखंड बाकी हिमालयी राज्यों के मुकाबले भी कम मतदान करता है। राज्य के भीतर ही, पहाड़ में मैदान के मुकाबले कम मतदान होता है।

उत्तराखंड में पिछली बार 74 के मुकाबले इस बार मैदान में केवल 52 प्रत्याशी ही हैं। निर्वाचन आयोग की सख्ती के चलते भी चुनाव प्रचार अपने दायरे में ही हो रहा है। इसके पीछे जो सबसे बड़ा कारण नजर आता है वो ये कि अब देश की जनता लोकतांत्रिक प्रणाली को लेकर जागरूक हो गई है। फिर इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल माध्यम सामने आने से प्रचार कई जगह बंट गया है।

ये हैं प्रमुख कारण–

  • चुनाव आयोग की सख्ती के कारण धनबल का सीमित इस्तेमाल
  • फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप जैसे प्रनिर्वाचन आयोग के जागरूकता से जुड़े पोस्टर और होर्डिंग तो जहाँ तहां खूब नजर आ रहे हैं मगर, प्रत्याशियों और दलों की प्रचार सामग्री पूरी तरह से गायब नजर आ रही हैचार के नए माध्यम
  • प्रत्याशी घटने से भी राज्य में कम ही चुनाव प्रचार हुआ
  • उत्तराखंड में ज्यादातर आमने-सामने वाला मुकाबला
  • इलेक्शन थीम से पोस्टर और बैनर का सीमित इस्तेमाल

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